श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है एक अत्यंत सार्थक, भावुक एवं समसामयिक विषय पर रचित लघुकथा “हल्दी कुमकुम”। इस सामायिक एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 80 ☆
??हल्दी कुमकुम ??
आज पड़ोसी चाची के यहां “हल्दी कुमकुम” का कार्यक्रम है, वर्षा ने जल्दी जल्दी तैयार होते अपने पतिदेव को बताया।
उन्होंने कहा.. तुम जानती हो मम्मी फिर तुम्हें खरी खोटी सुनाएंगी, क्योंकि मम्मी का वहां आना-जाना बहुत होता है। पर चाची ने मुझे भी बुलाया है वर्षा ने हंसकर कहा..।
बाहर पढ़ते-पढ़ते और एक साथ नौकरी करते हुए वर्षा और पवन दोनों ने समाज और घर परिवार की परवाह न करते हुए विवाह कर लिया था।
मम्मी-पापा ने बेटे का आना जाना तो घर पर रखा परंतु वह बहु को अंदर घुसने भी नहीं देते थे।
बहू को अपनी बहू नहीं स्वीकार कर पा रहे थे। हारकर दोनों शहर में ही ऑफिस के पास मकान लेकर रहने लगे थे।
वर्षा समझाती… कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। मम्मी पापा का गुस्सा होना जायज है क्योंकि मैं आपकी बिरादरी की नहीं हूं!!! पवन कहता आजकल जात-पात कौन देखता है? जिसके साथ जिंदगी संवरती है और जिससे तालमेल होता है उसी के साथ विवाह करना चाहिए।
जल्दी-जल्दी वर्षा तैयार होकर चाची के घर पहुंच गई। सासू मां पहले से ही आ गयी थीं। वर्षा ने सभी को प्रणाम करके एक ओर बैठना ही उचित समझा।
हल्दी कुमकुम का कार्यक्रम शुरू हुआ। सभी महिलाओं को तिलक लगा। नाश्ता और खाने का सामान दिया गया। सभी की हंसी ठिठोली आरंभ हो गई और सासू मां की वर्षा को लेकर छीटाकशी भी सभी देख रहे थे।
बातों ही बातों में वर्षा की सासू मां को सभी महिलाओं ने कहा… “तुम कब कर रही हो हल्दी कुमकुम का कार्यक्रम। पिछली बार भी तुमने नहीं किया था। इस बार तो कर लो। अब तो बहु भी आ गई है। सभी ने एक दूसरे को देखा??”
सासू मां को भी शायद इसी दिन का इंतजार था बस बोल पडी… “ठीक है तो कल ही रख लेते हैं। सभी आ जाना जितनी भी यहां महिलाएं आई हैं। सभी को निमंत्रण हैं। सभी को आना है।”
वे कनखियों से बहू की तरफ देख रही थी। बहू ने भी हाँ में सिर हिलाया।
पवन समय से पहले आ गया गाड़ी लेकर ताकि वर्षा को कहीं कोई बात न लग जाए। वह सड़क से ही गाड़ी का हार्न बजा रहा था।
वर्षा “अभी आई कह..” कर जाने लगी। सभी को प्रणाम कर सासू माँ के ज्यों ही चरण स्पर्श करने के लिए झुकी उन्होंने बाहों में भर कर कहा… “बहु, कल तुम्हारी पहली हल्दी कुमकुम होगी। दुल्हन के रूप में सज धजकर मेरी देहली पर आना साथ में उस नालायक को भी ले आना।”
वर्षा की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली। खुशी से रोते हुए हंस रही थी या हंसते हुए रो पडी, पर आँसू थे खुशी के ही। फूली ना समाई वर्षा।
अपने घर आने के इंतजार में वह झटपट पवन की गाड़ी में जा बैठीं। आज इतनी खुशी से चहकते हुए वर्षा को पहली बार पवन ने देखा तो देखता रह गया। क्योंकि वह माँ और वर्षा की कुछ बातों से अनजान जो था।
मुझे कल घर आना है कह कर आंसुओं की धार लिए पवन से लिपट गई वर्षा!!!!!!!
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अति सुन्दर रचना