डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं। आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख “सोशल मीडिया जनित हत्यायें और जवाबदेही”.)
☆ किसलय की कलम से # 36 ☆
☆ सोशल मीडिया जनित हत्यायें और जवाबदेही ☆
वैसे तो हम सोशल मीडिया पर अवांछित खबरें या चित्र छपने पर अप्रिय वारदातों को पढ़ते सुनते आ रहे हैं लेकिन वर्तमान में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक चित्र, संदेश एवं पोस्ट किए गए वीडियोज के कारण हत्याओं के बढ़ते मामले बेहद चिंता जनक हैं।
आज जिस तरह से वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्ट्राग्राम या अन्य सोशल मीडिया के साधन लोकप्रियता पा रहे हैं, उनका उपयोग समाज को लाभ कम और हानि ज्यादा पहुँचा रहे हैं। आपराधिक प्रवृत्ति के लोग अंतरजाल की नवीनतम सुविधाओं का जिस चालाकी से दुरुपयोग करते हैं, वह सामान्य जनता की सोच के परे होता है। लोग अन्तरजालीय तकनीकि का तीस – चालीस प्रतिशत भी उपयोग नहीं कर पाते। बैंकिंग को लेकर होने वाले अपराधों और ऑनलाइन व्यापार आदि में सबको पता है आम आदमी कितना ठगा जा रहा है। अंतरजाल पर असामाजिक तत्त्वों द्वारा अश्लीलता का परोसा जाना भी किसी से छिपा नहीं है। आज इसी मीडिया पर बने संबंध और नजदीकियाँ युवक-युवतियों को अनैतिक गतिविधियों की ओर प्रेरित कर रहे हैं। इनके बीच पनपे अवैधानिक संबंध समाज और परिवार की बेइज्जती तथा आत्महत्या के कारण बनते जा रहे हैं। आज मीडिया पर एक पोस्ट भी पक्ष और विपक्ष का विवाद, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक वबाल खड़ा करने में सक्षम हो चुका है। मीडिया से उपजी वैमनस्यता धर्म, संप्रदाय और पारिवारिक हिंसा को बढ़ावा दे रही है। पर्व, उत्सव मेले या चुनावी माहौल में एक समाचार, किसी की टिप्पणी या विज्ञापन पर सारा मीडिया गृह युद्ध का वातावरण निर्मित कर देता है। समझाइश और शांति की अपील के बजाए लोगों के अप्रिय और निरर्थक वक्तव्य आग में घी का काम करते हैं। हमारे बुजुर्ग कहा करते हैं, मतभेद रखो परंतु आपस में मन भेद नहीं रखना चाहिए। बुजुर्गों की ये सीख आज मानता ही कौन है। वर्तमान राजनीतिक क्षेत्र में क्या चल रहा है? नीति का कहीं अता-पता नहीं है। पहले युद्ध भी उसूलों और सिद्धांतों पर आधारित लड़े जाते थे।शायद यही कारण है कि आज की राजनीति किसी विशेष या परिपक्व नीति पर आधारित न होकर सामयिक बनती जा रही है। फिर भी हम कहेंगे कि राजनीतिक विचारधारा को समर्थन देना अलग बात है परंतु यही विचारधारा यदि हत्या, आतंक अथवा देशद्रोह की ओर प्रेरित करे तो यह हमारे समाज, हमारे देश या समूचे विश्व के लिए खतरनाक है। विश्व में अंतरजालीय अपराधों के नियंत्रण संबंधी कानून और नियमावलियों की चर्चा आए दिन सुनते रहते हैं। अंतरजालीय अपराधियों एवं हैकर्स के किस्से सुनने के बाद भी ये मामले घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। विश्व में नियम बन रहे हैं। सावधानियाँ बरती जा रही हैं। इस की जवाबदेही किसकी है? शायद इस ओर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया पर नियंत्रण संबंधी कानूनों का न होना या कठोरता से पालन न किया जाना इसका प्रमुख कारण है।शिक्षित वर्ग में जागरूकता की कमी तीसरा कारक है और शायद दिग्भ्रमित युवाओं द्वारा अंतरजालीय सुविधाओं का दुरुपयोग कर असंवैधानिक गतिविधियों में लिप्त होना भी एक कारण है। निश्चित रूप से सरकारों द्वारा सकारात्मक रुख एवं कानूनी नियंत्रण सबसे कारगर साबित हो सकता है।
आज यह हालात हमारे पूरे देश क्या पूरे विश्व में बने हुए हैं। यद्यपि हमारा देश शांतिप्रिय देशों में गिना जाता है लेकिन अन्तरजालीय मीडिया के संदेशों के कारण शुरू हुई हिंसाएँ खतरे की घंटी कही जा सकती है। हमारे देश की केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के लिए यह चिंतन और सतर्कता का समय है। इन सरकारों को चाहिए कि वे ऐसे मामलों में चतुर्दिश चौकस रहें और भविष्य में ऐसी किसी भी सोशल मीडिया जनित हत्यायें एवं दुर्घटनाओं को रोकने में सक्षम हों।
© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
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