श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना खोटा सिक्का….। )
☆ तन्मय साहित्य #85 ☆
☆ खोटा सिक्का…. ☆
उसने खोटा सिक्का
धर्म वेदी पर चढ़ा दिया
दानी धर्मी बन ऐसे
अपना कद बढ़ा लिया
सुबह नहाए, मिटी खुमारी,
फिर किताब बाँची
और रोज की तरह
लगे करने झूठी साँची
फूटपरस्ती के पांसे चल
सब को लड़ा दिया
अपना कद बढ़ा लिया ……..
शाम हुई सत्संग भवन में
सबसे आगे थे
घर आकर मधु पान
ज्ञान के उलझे धागे थे
एक आवरण फेंक
दूसरा चोला चढ़ा लिया
अपना कद बढ़ा लिया ……
कपटी नींव भ्रष्ट तानों-बानों
की दीवालें
गिरगिटियों से रंगे भवन में
सबके मन काले
भावहीन बौनों ने
भूल भुलैया खड़ा किया
अपना कद बढ़ा लिया …….
आदर्शों का पिटे ढिंढोरा
मक्कारी मन में
चेहरे हैं रंगीन, दाग धब्बे
बाकी तन में
पाठ फरेबी का
संतानों को भी पढ़ा दिया
दानी धर्मी बन ऐसे
अपना कद बढ़ा लिया।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0
मो. 9893266014
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
तन्मय जी बहुत ही सुन्दर अर्थपूर्ण रचना, उत्कृष्ट शब्द शिल्प, बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय श्री श्याम जी, नमस्कार