श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 74 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
फसल मिले वैसी हमें, जैसा बोया बीज
जग में कर्म प्रधान है, कर्म बड़ी है चीज
जो खेतों में रात दिन, करते हैं श्रम दान
अपने हक को लड़ रहा, पोषक वही किसान
गाँवों से अब निकल कर, चले शहर की ओर
श्रमिक खेत को छोड़के, खोज रहे नव ठोर
माटी से उपजे सभी, माटी की यह देह
माटी में ही सब मिले, करें ईश से नेह
सूने सारे हो गए, खेत और खलिहान
सड़कों पर निकले सभी, हक के लिए किसान
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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बेहतरीन अभिव्यक्ति