श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “ओ चिंता की पहली रेखा। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 170 ☆

☆ ओ चिंता की पहली रेखा… ☆

बिना परिवर्तन के जीवन सुखद  हो ही नहीं सकता है। जब व्यक्ति के स्वभाव में अन्तर आता है, तो उसकी झलक बोली में दिखायी देती है।

आज हम बात करेंगे, जनरेशन गैप की, जो हर बुजुर्ग को सुनना ही पड़ता है जैसे ही बच्चों के साथ तारतम्य न मिले तो वे कह देते आप क्या जानो या समय के साथ बदल जाइये अन्यथा अकेले रह जायेंगे।

क्या इतना बदलाव हमारी संस्कृति के अनुरूप है कि कल तक जो उँगली पकड़ कर चलता था आज वो एक नयी राह बना आपको ही चलना सिखा दे।  खैर ये तो सदियों से चला आ रहा है, मानव भी तो  जंगल के जीवन से उत्तरोत्तर उन्नति कर आज आकाशीय ग्रहों में बसेरा करने  की योजना बना रहा है, परिवर्तन सत्य है, समय  के अनुरूप स्वयं को बदलते रहें, ये मत भूलें हम सबसे ही समाज है जो देर सवेर ही सही भावी पीढ़ी को सौंपना  होगा। अतः हँसते हुए विचारों का हस्तांतरण करें खुद भी सुखी रहें उनको भी सुखी रहने का आशीर्वाद  देकर।

भले ही कम बोलें पर शब्द सार्थक हों जिससे किसी को ठेस न लगे, जिस तरह नेहिल शब्दों से अपनत्व का बोध होता है उसी तरह कटु शब्द विषैले तीर से भी घातक हो, सामने वाले को दुःखी कर देते हैं।  लोगों की नजर में जो अपशब्द बोलता है, उसके लिए इज्जत कम हो जाती है। जो कुछ है वो वर्तमान है, कल न किसी ने देखा है न देखेगा जैसे ही  कल में पहुँचते हैं वो आज बन जाता है। ये सब तर्क शक्ति के अनुसार  तो सही है पर इतिहास गवाह है कि बिना अच्छी योजना कोई भी सफल  नहीं हुआ, वर्तमान में जिसने भी श्रम किया उसे भविष्य ने पूजा व सराहा।

जितने लोग उतनी विचारधारा हो सकती है, सभी अपने – अपने अनुसार सही भी होते हैं परन्तु जिससे जन कल्याण हो वही कार्य करें जिससे मानव का जन्म सफल हो। ज्योतिषी अपनी खगोलीय गणना द्वारा हमारा  भूत, वर्तमान व भविष्य सब कुछ बता देते हैं।  ये भी एक बड़ा सत्य है दरसल भविष्य शब्द भाव से बना है जो भाव को जीते हैं ईश्वर उनका सदैव  साथ  देता है जिससे भविष्य दिनों दिन निखरता जाता है  कर्म करते रहें बिना फल  की लालसा क्योंकि वृक्ष भी फल समय आने पर ही देता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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