(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकते हैं ।
आज प्रस्तुत है डा राजेश कुमार व डा लालित्य ललित द्वारा सम्पादित पुस्तक “२१ वीं सदी के श्रेष्ठ २५१ व्यंग्यकार” – की समीक्षा।
पुस्तक – २१ वीं सदी के श्रेष्ठ २५१ व्यंग्यकार
संपादन – डा राजेश कुमार व डा लालित्य ललित
प्रकाशक – इण्डिया नेट बुक्स, नोयडा
इण्डिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड लिंक >> २१ वीं सदी के श्रेष्ठ २५१ व्यंग्यकार
अमेज़न व फ़्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध
व्यंग्य का बहुरंगी अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक संकलन
हिन्दी जगत में साझे साहित्यिक संकलनो की प्रारंभिक परम्परा तार सप्तक से शुरू हुई थी. वर्तमान अपठनीयता के युग में साहित्यिक किताबें न्यूनतम संख्या में प्रकाशित हो रही हैं, यद्यपि आज भी व्यंग्य के पाठक बहुतायत में हैं. इस कृति के संपादक द्वय डा राजेश कुमार व डा लालित्य ललित ने व्यंग्य के व्हाट्स अप समूह का सदुपयोग करते हुये यह सर्वथा नवाचारी सफल प्रयोग कर दिखाया है.तकनीक के प्रयोग से इस वैश्विक व्यंग्य संकलन का प्रकाशन ३ माह के न्यूनतम समय में पूरा हुआ है. नवीनतम हिन्दी साफ्टवेयर के प्रयोग से इस किताब की प्रूफ रीडिंग कम्प्यूटर से ही संपन्न की गई है. किताब भारी डिमांड में है तथा प्रतिभागी लेखको को मात्र ८० रु के कूरियर चार्ज पर घर पहुंचाकर भेंट की जा रही है. तार सप्तक से प्रारंभ साझा प्रकाशन की परम्परा का अब तक का चरमोत्कर्ष है व्यंग्य का बहुरंगी कलेवर वाला,अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक व्यंग्य संकलन”२१ वीं सदी के श्रेष्ठ २५१ व्यंग्यकार”. ६०० से अधिक पृष्ठों के इस ग्रंथ का शोध महत्व बन गया है. इससे पहले डा राजेश कुमार व डा लालित्य ललित”अब तक ७५”, व उसके बाद”इक्कीसवीं सदी के १३१ श्रेष्ठ व्यंग्यकार” सामूहिक व्यंग्य संकलनो का संपादन, प्रकाशन भी सफलता पूर्वक कर चुके हैं.
व्यंग्य अभिव्यक्ति की एक विशिष्ट विधा है. व्यंग्यकार अपनी दृष्टि से समाज को देखता है और समाज में किस तरह से सुधार हो सके इस हेतु व्यंग्य के माध्यम से विसंगतियां उठाता है. संग्रह की रचनाएं समाज के सभी वर्ग के विविध विषयों का प्रतिनिधित्व करती हैं. एक साथ विश्व के 251 व्यंग्यकारों की रचनाएं एक ही संकलन में सामने आने से पाठकों को एक व्यापक फलक पर वर्तमान व्यंग्य की दशा दिशा का एक साथ अवलोकन करने का सुअवसर मिलता है. व्यंग्य प्रस्तुति में टंकण हेतु केंद्रीय हिन्दी निदेशालय की देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण के दिशा निर्देश अपनाये गये हैं. रचनाओ के संपादन में आधार भूत मानव मूल्यों, जातिवाद, नारी के प्रति सम्मान, जैसे बिन्दुओ पर गंभीरता से ध्यान रखा गया है, जिससे ग्रंथ शाश्वत महत्व का बन सका है.
“इक्कीसवीं सदी के 251 अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ व्यंग्यकार” में व्यंग्य के पुरोधा परसाई की नगरी जबलपुर से इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव, इंजी सुरेंद्र सिंह पवार, इंजी राकेश सोहम, श्री रमेश सैनी, श्री जयप्रकाश पाण्डे, श्री रमाकांत ताम्रकार की विभिन्न किंचित दीर्घजीवी विषयों की रचनायें शामिल हैं. मॉरीशस स्थित विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा विश्व को पाँच भौगोलिक क्षेत्रो में बाँटकर अंतरराष्ट्रीय व्यंग्य लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. संकलन में इस प्रतियोगिता के विजेताओं में से सभी प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले व्यंग्यकारों कुसुम नैपसिक (अमेरिका), मधु कुमारी चौरसिया (युनाइटेड किंगडम), वीणा सिन्हा (नेपाल), चांदनी रामधनी‘लवना’ (मॉरीशस), राकेश शर्मा (भारत) जिन्होंने प्रथम पुरस्कार जीते और आस्था नवल (अमेरिका), धर्मपाल महेंद्र जैन (कनाडा), रोहित कुमार ‘हैप्पी’ (न्यूज़ीलैंड), रीता कौशल (ऑस्ट्रेलिया) की रचनायें भी संकलित हैं. इनके अलावा विदेश से शामिल होने वाले व्यंग्यकार हैं- तेजेन्द्र शर्मा (युनाइटेड किंगडम), प्रीता व्यास (न्यूज़ीलैंड), स्नेहा देव (दुबई), शैलजा सक्सेना, समीर लाल ‘समीर’ और हरि कादियानी (कनाडा) एवं हरिहर झा (ऑस्ट्रेलिया) इस तरह की भागीदारी से यह संकलन सही मायनों में अंतरराष्ट्रीय संकलन बन गया है.
भारत से इस संकलन में 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के व्यंग्यकारों ने हिस्सेदारी की है. मध्य प्रदेश के 65,उत्तर प्रदेश के 39, नई दिल्ली के 32, राजस्थान के 32, महाराष्ट्र के 18, छत्तीसगढ़ के 12, हिमाचल प्रदेश के 8, बिहार के 6, हरियाणा के 4, चंडीगढ़ के 3, झारखंड के 4, उत्तराखंड के 4, कर्नाटक के 4, पंजाब के 2, पश्चिम बंगाल के 2, तेलंगाना से 2, तमिलनाडु से 1, गोवा से 1 और जम्मू-कश्मीर से 1 व्यंग्यकारों के व्यंग्य हैं.
यदि स्त्री और पुरुष लेखकों की बात करें तो इसमें 51 व्यंग्य लेखिकाएँ शामिल हुई हैं. इस बहु-रंगी व्यंग्य संचयन में जहां डॉ सूर्यबाला, हरि जोशी, हरीश नवल, सुरेश कांत, सूरज प्रकाश, प्रमोद ताम्बट, जवाहर चौधरी, अंजनी चौहान, अनुराग वाजपेयी, अरविंद तिवारी, विवेक रंजन श्रीवास्तव, विनोद साव,शांतिलाल जैन, श्याम सखा श्याम, मुकेश नेमा, सुधाकर अदीब, स्नेहलता पाठक, स्वाति श्वेता, सुनीता शानू जैसे सुस्थापित व चर्चित हस्ताक्षरो के व्यंग्य भी पढ़ने मिलते हैं, वही नवोदित व्यंग्यकारों की रचनाएं एक साथ पढ़ने को सुलभ है
संवेदना की व्यापकता, भाव भाषा शैली और अभिव्यक्ति की दृष्टि से व्यंग्य एक विशिष्ट विधा व अभिव्यक्ति का लोकप्रिय माध्यम है. प्रत्येक अखबार संपादकीय पन्नो पर व्यंग्य छापता है. पाठक चटकारे लेकर रुचि पूर्वक व्यंग्य पढ़ते हैं. इस ग्रंथ में व्यंग्य की विविध शैलियां उभर कर सामने आई है जो शोधार्थियों के लिए निश्चित ही गंभीर शोध और अनुशीलन का विषय होगी. इस महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य की अनुगूंज हिन्दी साहित्य जगत में हमेशा रहेगी.
समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
पुस्तक चर्चा व समीक्षा में यह अंतर होता है कि चर्चा में किताब का परिचय सन्नहित होता है , जबकि समीक्षा में विषय वस्तु की व्याख्या की जाती है