श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “मैं स्वाभिमानी हूँ ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 35 ☆
☆ मैं स्वाभिमानी हूँ ☆
जिंदगी में सदा मुझको अंधेरे मिलें
उजाले के लिए मैं लड़ता रहा
पथ में बिछें थे कांटे मगर
मैं जख्मी होकर भी चलता रहा
तूफानों ने मुझको कई बार रोका
घर उजाड़ने काफी था एक झोंका
तिनके तिनके जोड़कर बनाया
था आशियाना
सजाया-संवारा जब भी मिला मौका
राह में एक खूबसूरत हमसफ़र मिलीं थीं
हाथ थामे संग संग
कुछ दूर चली थी
परंपराओं के, रूढियोंके बंधन
ना वो तोड़ पायी
बिखर गए सपने
पर वो लड़की भली थी
अपनों ने मुझको हमेशा रूलाया
ना दर्द बांटा, ना पास बिठाया
हिम्मत दी मुझको, जो थे पराये
खिलाया निवाला, गले से लगाया
मैंने अपने उसूलों सें
समझौता नहीं किया
सत्य के मार्ग पर चला
झूठ का सहारा नहीं लिया
हो उनको मुबारक,
ये दौलत, ये महल सारे
मै स्वाभिमानी हूँ
मैंने भीख में कुछ नहीं लिया
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© श्याम खापर्डे
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