सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “मंजिल”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 76 ☆
जाने की सोची थी ये कहाँ, कहाँ चल दिए हम
लिखा हो जो रास्ता सो हो, कहाँ हमें कोई ग़म
ज़िंदगी की अपनी ही ताल है, लय पर चलती है
कठपुतली हैं हम, चल देते हैं, जहां ले जाते कदम
करें क्या बात आशनाई की, कहाँ सबको साथ है
उम्मीद नहीं इतनी वफ़ा की, कोई दे साथ हरदम
झुक जाता है सर रब के आगे, यार सा लगता है
चलता ही रहा थामे हाथ, ग़म ने जब घेरा दामन
बहुत दिनों की कहाँ जीस्त, ख़त्म ही हो जायेगी
उम्मीद यही है रब से अब, चलती रहे ये कलम
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈