श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण कविता “कहाँ गई नन्ही गौरैया”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 77 ☆
☆ कहाँ गई नन्ही गौरैया ☆
कहाँ गई नन्ही गौरैया
पूछ रहा अब मुनमुन भैया
फुदक फुदक कर घर आँगन में
बसे सदा वह सब के मन में
करती थी वो ता ता थैया
कहाँ गई नन्ही गौरैया
पेड़ों की हो रही कटाई
जंगल सूखे गई पुरवाई
सूख गए सब ताल-तलैया
कहाँ गई नन्ही गौरैया
घर में रौनक तुम से आती
चुगने दाना जब तुम आती
खुश हो जाती घर की मैया
कहाँ गई नन्ही गौरैया
हमें अब अफसोस है भारी
सूनी है अब घर-फुलवारी
बापिस आ जा सोन चिरैया
कहाँ गई नन्ही गौरैया
तुम बिन अब “संतोष” नहीं है
माना हम में दोष कहीँ है
बदलेंगे हम स्वयं रवैया
घर आ जा मेरी गौरैया
रखी है पानी की परैया
बना रखी पिंजरे की छैयां
अब घर आ मेरी गौरैया
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित