श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है होली पर्व पर एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “साजन-सजनी की होली”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 36 ☆
☆ होली पर्व विशेष – साजन-सजनी की होली ☆
रंगों की बौछार है
पिचकारीं में प्यार है
सजनी का इनकार है
तो, साजन बेकरार है
पिचकारी डाल रही रंगों को
भिगो रही सजनी के अंगों को
भीगी चोली, भीगी साड़ी
दिल में बढ़ा रही उमंगों को
हाथों से मुखड़ा ढाप रही हैं
सजनी इत उत भाग रहीं हैं
छुपके बैठा है उसका साजन
साजन से लाज उसे लाग रही है
पकड़ी गई जब उन्मुक्त हिरणी
साजन करने लगा मनकी अपनी
भिगो दिया अंग अंग सजनी का
सजनी की देह लगी है तपनी
सजनी ने भी कहां हार है मानी
वो भी तो है शैतान की नानी
डुबों दिया ड्रम में साजन को
करने लगी साजन संग मनमानी
साजन ने सजनी को खींचा
उसकी देह को बाहों में भींचा
रंगों में डूब गये वो दोनों
रंगीन अधेरों को चुंबन से सींचा
रंगों का खेल वो खेल रहे हैं
एक दूसरे का वार वो झेल रहे हैं
झूम रहीं हैं सारी कायनात
मस्ती में एक दूजे को ठेल रहे हैं
आओ,
हम तुम भी यह त्योहार मनायें
शालीनता से रंग लगाये
भूल जायें सारी कड़वाहट
भांग पियें, खुशियां मनायें /
© श्याम खापर्डे
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