हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य – # 12 – स्वयं से सदा लड़े हैं…..☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है गीत – कविता “स्वयं से सदा लड़े हैं…..”। )
(अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की फेसबुक से साभार)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 12 ☆
☆ स्वयं से सदा लड़े हैं….. ☆
जग में रह कर भी,
जग से हम अलग खड़े हैं
हम दूजों से नहीं
स्वयं से सदा लड़े हैं।
राम-राम, सत श्री अकाल
प्रभु ईश, सलाम
चर्च, गुरु द्वारा, मस्जिद
सह चारों धाम,
नहीं कहीं सद्भाव परस्पर
ही झगड़े हैं।
हम दूजों से नहीं स्वयं से सदा…….
चाह बड़े होने की मन में
सदा रही है
कब सोचा यह सही और
यह सही नहीं है
श्रेय-प्रेय के संशय में
खुद से बिछड़े हैं
हम दूजों से नहीं, स्वयं से सदा…….
खण्ड-खंड कर अपने को
हम रहे बांटते
दिखी दरार जहां भी
उसको रहे पाटते,
नहीं रहे दुर्भाव, कौन
अगड़े पिछड़े हैं
हम दूजों से नहीं, स्वयं से सदा…….
है मन में संतोष, सुखद
जो लिया-दिया है
सम्यक भावों से जीवन को
सही जिया है,
मेरे-तेरे के घेरों से
अलग खड़े हैं
हम दूजों से नहीं, स्वयं से सदा…….
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014