श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है होली पर्व पर एक विशेष लघुकथा “मैरीज होली विशेज”। इस धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वधर्म सद्भाव पर आधारित भावप्रवण एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 84 ☆
लघुकथा- मैरीज होली विशेज
नंदिनी अपनी शादी के बाद पहली होली खेलने अपने पतिदेव के साथ मायके आई हुई थी। अभी- अभी पड़ोस में एंग्लो- इंडियन क्रिस्चियन परिवार रहने आया था। ज्यादा जान पहचान नहीं हुई थी हाव भाव हैलो हाय हो रहा था।
चूंकि हमारी भारतीय परंपरा रही है कि होली पर सभी के माथे पर तिलक लगा, मिलकर होली की शुभकामना कह कर बड़ों से आशीर्वाद और छोटों को प्यार दिया जाता है। नंदिनी भी सुबह से चाहक रही थी क्योंकि अपने पतिदेव के साथ मायके की पहली होली बहुत ही यादगार और प्रभाव पूर्ण बनाना चाहती थी।
गुलाल के कई रंगों की पुड़िया लिए निकल पड़ी अपने अपार्टमेंट में होली खेलने। रंगों से लिपि पुती बस उन्हीं के यहाँ नहीं गई क्योंकि उसको लगा शायद यह थोड़े बुजुर्ग आंटी अंकल है। और क्रिस्चियन है, तो पता नहीं अभी आए हैं और होली का तिलक लगाएंगे भी या नहीं।
यह सोच कर वह घर आ गई। नहा-धोकर तैयार हो गई। उसी समय उनके घर का काम करने वाला नंदिनी से आकर बोला – “मैडम और सर ने आपको बुलाया है।” नंदिनी ने आवाक होकर देखती रही। पतिदेव के साथ थोड़ी ही देर में उसके घर पहुंच गई।
आपस में बातचीत हुई। बहुत ही सुंदर वातावरण। आंटी ने एक थाली में थोड़ा सा चाँवल,गुलाल, लिफाफा और एक सुंदर सी साड़ी लेकर बाहर निकली। अंग्रेजी में बात करने लगी, बोली -” हम जानते हैं कि तुम्हारी यह पहली होली है। हमको तुम्हारे यहां का रिवाज पूरी तरह मालूम नहीं है। अभी सर्वेंट से पूछा तो उसने बताया। यह हमारी तरफ से आप का पहला होली का गिफ्ट है और “Wish you a very Happy Holi” कह कर गुलाल लगाई और चाँवल को आँचल में डाल, गिफ्ट दे गले लगा ली।
नंदिनी ने आंटी को कसकर गले लगा लिया। ‘मैरी आंटी’ आंटी का नाम मैरी था। “आपका गिफ्ट मुझे हमेशा याद रहेगा। आपने मेरी और मेरे पतिदेव की होली की खुशी को यादगार बना कई गुना अधिक कर दिया है।” (I will always remember your gift. You have made my and my husband’s happiness of Holi memorable many times more.)
खुशी के मारे मैरी आंटी-अंकल गदगद हो गये और वे बोली – “अब जब भी घर आओगी, घर आना हमारे पास। हम तुम्हारा इंतजार करेंगे। “गुलाल से सरोबार करते पतिदेव ने भी मैरी आंटी – अंकल को खूब हँसाया। मैरी विश पाकर नंदिनी खिल उठी।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈