डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके “साप्ताहिक स्तम्भ -साहित्य निकुंज”के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की एक कहानी “किससे मांगे क्षमा?”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 12 साहित्य निकुंज ☆
☆ किससे माँगे क्षमा ? ☆
आज बेटी को विदा करने के बाद मन बहुत उदास था आँसू है जो थमने का नाम ही नहीं ले रहे।इतने में कहीं से एक स्वर उभरा आज जो हुआ वह सही था या पहले जो मैंने निर्णय किया था तुमने वह सही था ।
दिमाग के सारे दरवाजे खिड़कियाँ खुल गई और मन विचारों के सागर में गोते लगाने लगा पहुंच गए कई वर्ष पीछे…..
दरवाजे पर आहट हुई दरवाजा खोलते ही पड़ोस के अंकल ने कहा… कि आज हमने तुम्हारी बहन को किसी सरदार के साथ स्कूटर पर जाते देखा है।
मेरा तो जैसे खून ही खौल गया। बस इसी प्रतीक्षा में थे कब शुभा घर आए और उस तहकीकात की जाए. जैसे ही शुभा का घर में प्रवेश हुआ मैंने तुरंत पूछा “वह कौन सरदार था जिसके पीछे तुम बैठी थी।”
शुभा अचकचा गई ।
बोली “क्या हुआ भैया आप किसकी बात कर रहे हैं?”
“देखो शुभा बातें बनाने का समय नहीं है सीधे-सीधे से मेरे सवाल पर आओ.”
शुभा सर नीचे करके खड़ी हो गई उसके के पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं था।
“मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ जिसके जवाब की मुझे प्रतीक्षा है।”
“जी भैया, वह मेरा दोस्त है और मैं उसके साथ जीवन बिताना चाहती हूँ।”
“तुम्हारा यह सपना कभी पूरा नहीं होगा।”
तभी पिताजी ने कहा – “बेटा एक बार देख सुन तो लो, शायद पसंद आ जाए। जात पात से क्या होता है?”
“पिताजी हम हिंदू हैं और हम किसी दूसरे समाज में जाना पसंद नहीं करेंगे।”
“हम नहीं चाहते कि हमारी बहन किसी सरदार को ब्याही जाए. अब तेरा जाना घर से बंद अगर मिलने मिलाने की कोशिश की तो काट देंगे।”
“जहाँ हम तेरा सम्बंध करेंगे वहीं तुझे करना पड़ेगा।”
लेकिन हमारे किसी भी सम्बंध से बहन तैयार नहीं हुई बोली – “मैं शादी ही नहीं करूंगी।” तब अंततोगत्वा सरदार के साथ बहन का विवाह मंदिर में हो गया हम लोगों ने उस दिन से बहन से सम्बंध तोड़ दिए. माता पिता को भी आगाह कर दिया गया कि आप भी उससे सम्बंध नहीं रखेंगे।
कुछ वर्षों बाद पता चला की बहन बीमारी से पीड़ित होकर इस दुनिया को छोड़ कर चली गई उसका एक बेटा भी है। लेकिन तब भी मेरे मन में कोई भाव जागृत नहीं हुये। माँ तड़पती थी रोती थी लेकिन मैंने कहा – “ऐसी बहन से ना होना ज़्यादा बेहतर है।”
आज किसी ने मुझे अतीत में पहुंचा दिया ।मुझे महसूस हो रहा है इतिहास अपने आप को दोहराता है।
कई वर्ष बीत जाने के बाद जब मेरी बेटी का रिश्ता नहीं हुआ तो मेरी बेटी ने मुझसे कहा – “पापा मेरे ऑफिस में काम करने वाला मेरा साथी सुब्रतो है।” तब हमने कहा- “ठीक है हम लोग चलकर उसका घर परिवार दिखाएंगे।”
तब एक क्षण को भी यह-यह ख्याल नहीं आया कि बेटी भी उसी दिशा की ओर जा रही है जिस दिशा को मेरी बहन गई थी। हमने उस बंगाली परिवार के रिश्ते को सहर्ष स्वीकार किया और धूमधाम से विवाह किया।
क्या हुआ भाई आँखे क्यों नम हो गई.
हमने हाथ जोड़कर कहा – “आज आपने हमारी आँखे खोल दी”
बहन बेटी के रिश्ते में कितना फर्क किया हमने।जो आज निर्णय लिया है वही पहले लिया होता तो शायद बहन हमारी आज जीवत होती। आज अंतर्मन धिक्कार रहा है मैं आज क्षमा मांगने के लायक भी नहीं रहा।
उत्तम