डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 90 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
विनती प्रभु वर आपसे,
करते बारंबार।
कोरोना के कहर से,
मुक्त करो संसार।।
महावीर अब कुछ करो,
सही न जाए पीर।
धीरे धीरे टूटता,
इंसानों का धीर।।
समाधान अब चाहिए,
होगा कभी निदान।
धरती देती जा रही,
इंसानों का दान।।
प्राणों की रक्षा करो,
सुनो वीर हनुमान
लाओ तुम संजीवनी ,
बचे सभी के प्राण।।
प्रत्याशा अब टूटती,
बची नहीं है आस।
पल पल में अब छूटती,
इंसानों की सांस।।
प्रत्याशा मन में रखो,
जीतेंगे संग्राम।
कोरोना के काल में,
जपा करो तुम राम।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
आज के समय के लिए महत्वपूर्ण दोहे, आभार
बढ़िया