सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “जो मिला, सो मिला ”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 80 ☆
चाहत थी कितनी , ग़मगुसार ना मिला
होना हो जो सो हो, किसी से क्या गिला
घाव सारे धो दिए, मिटा दिए निशान
जो फिर घाव दिखा, उसको मैंने सिला
दुनिया घूम डाली, क़रार था रूह में
सहलाया प्यार से, चाहत का फूल खिला
जिगर की डालियों पर. बहार ही बहार है
शुरू हो गया जैसे कोई, प्यार का सिलसिला
ग़मगुसार की चाहत नहीं, न ही कोई आहट
क़ुबूल किया मुस्कुराकर, जो भी मुझे मिला
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अच्छी रचना