श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके कुछ अप्रतिम ‘हाइकु’। )
☆ तन्मय साहित्य # 91 ☆
☆ हाइकु ☆
व्याकुल पंछी
उड़ने को आकाश
छोड़ दें रास।
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मन बेचैन
संसाधनों के बीच
कहाँ है चैन।
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हंसते रहे
मन की बेचैनियाँ
किससे कहें।
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सुबह होगी
रात से निबाह लें
उजाले देगी।
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भूल गए हैं
जीवन के मर्म को
धर्म कर्म को।
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भटक गए
विलासी बाजार में
अटक गए।
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शिथिल हुए
समूचे अंग जब
समझे तब।
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काम न धाम
बुढ़ापे में बादाम
नहीं पचते।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
मजेदार प्रस्तुती