डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित प्रेरक लघुकथा रानी चेन्नम्मा। यह लघुकथा हमें हमारे इतिहास के एक भूले बिसरे स्त्री चरित्र की याद दिलाती है।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस प्रेरणास्पद लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 65 ☆

☆ रानी चेन्नम्मा ☆

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानियाँ तो हम सबने सुनी हैं। ‘कर्नाटक की लक्ष्मीबाई’ के नाम से प्रसिद्ध है कित्तूर की रानी चेन्नम्मा। ऐसी साहसी रानी जिसने सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया था। चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के राजा मल्लसरजा  के साथ हुआ था। कित्तूर उस समय बहुत छोटा लेकिन खूब संपन्न राज्य था। बताया जाता है कि वहाँ हीरे – जवाहरात के बाजार लगा करते थे। चेन्नम्मा अंग्रेजों के साथ – साथ अपनी किस्मत से भी दोहरी लडाई लड रही थी। बेटे की मृत्यु के दुख से वह उबर भी ना पाई थी कि पति का देहांत हो गया। अंग्रेजों की नजर बहुत समय से कित्तूर की धन संपदा पर थी । रानी चेन्नम्मा ने  शिवलिंग को गोद लेकर उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया। अंग्रेजों ने कित्तूर को हडपने के लिए चाल चली, उन्होंने  शिवलिंग को   वारिस मानने से इंकार कर दिया। चेन्नम्मा ने अंग्रेजों की बात नहीं मानी उसने साफ कहा कि यह हमारा निजी मामला है।

इसी बात को लेकर ब्रिटिश सेना और कित्तूर के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें ब्रिटिश सेना को मुँह की खानी पडी। रानी चेन्नम्मा की सेना ने दो ब्रिटिश अधिकारियों को बंदी बना लिया। जब अंग्रेजों ने वादा किया कि अब कित्तूर के राज काज में किसी प्रकार की दखलंदाजी नहीं करेंगे तो रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को रिहा कर दिया। ब्रिटिश अपनी जबान के पक्के तो थे नहीं, उन्होंने कुछ समय बाद ही पहले से भी बडी सेना के साथ कित्तूर पर धावा बोल दिया। रानी चेन्नम्मा कुशल योद्धा थी, अपनी सेना के साथ वह बडी बहादुरी से लड़ीं, लेकिन अंग्रेजों के मुकाबले सेना कमजोर पड जाने के कारण वह हार गईं। उसे बंदी बना लिया गया। अंग्रेजों से लोहा लेकर उसने भारतवासियों के मन में स्वाधीनता की लौ जला दी। वह हारकर भी जीत गई।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Bharat Zavar

राणी चेनम्मा के बारे में पहली बार जानकरी मिली

Ashok Murlidhar Ghorpade

Very nice freedom fighters. Salute

अमरेन्द्र नारायण

रानी चेन्नम्मा सम्बंधी लेख से इस वीर रानी के विषय में प्रामाणिक छानकारी मिली।हार्दिक धन्यवाद।