श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 81 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
नियति चक्र रुकता नहीं, होता वह गतिमान
इसीलिए सब कहत हैं, करें समय का मान
करें सदा ही समय पर, अपने सारे काम
साथ समय के जो चले, उसका होता नाम
समय चक्र चलता रहे, बदले कभी न चाल
करता नृप को रंक वह, निर्धन मालामाल
सूरज निकले समय पर, नियमित उसका चक्र
देख नियति के खेल को, सबको होता फक्र
बापिस कभी न आ सका, गुजर गया जो काल
जीवन में “संतोष” गर, तब सुधरेंगे हाल
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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