श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता ‘नदी है विश्राम में….’। )
☆ तन्मय साहित्य # 92 ☆
☆ नदी है विश्राम में…. ☆
नदी है विश्राम में
बहना हुआ है बंद
गीत का भटकन
विलोपित हो रहे हैं छन्द।
चिलचिलाती रेत
नौकाएँ हुई गुमसुम
अब न पूजा अर्चना
अक्षत कपूर कुमकुम,
आरती के स्वस्ति स्वर
होने लगे हैं मंद
गीत का भटकन……
मछलियाँ बेचैन
कछुए स्वयं में खोये
वन्य पशु-पक्षी तृषित
दृग अश्रु से धोये,
तटीय पौधे फूल पत्ते
हो रहे निर्गन्ध
गीत का भटकन
विलोपित हो रहे हैं छंद।
आग उगले सूर्य
चेहरे हो गए बदरंग
कैद दोपहरी घरों में
बदलते से ढंग,
सूर्य सागर अवनि में
नवसृजन के अनुबंध
गीत का भटकन
विलोपित हो रहे हैं छंद।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अच्छी रचना