श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता “मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे? ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 83 ☆
☆ मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे? ☆
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
गीत प्यार के गाऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
संस्कार छुप-छुप कर रोते
नैतिक मूल्य गरिमा खोते
मर्यादा सिखलाऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
संस्कार की धानी दूषित
लोभियों ने की कलूषित
दर्द शहर का दिखाऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
चारों तरफ मचा है कृन्दन
छिन्न-भिन्न और खिन्न है मन
मन को अब समझाऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
मानवता के दुश्मन जो भी
बहुरूपिये लालची-लोभी
इनके करम बताऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
संकट में जो लूट मचाते
अवसर समझ न इसे गंवाते
इनको सबक सिखाऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
बेच रहे नकली इंजेक्शन
इनका बहुत बड़ा कनेक्शन
दान से पाप धुलाऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
चले गए बे-मौत जहाँ से
लौट के आता कौन वहाँ से
आत्मा शांत कराऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
रोष प्रशासन में जब होगा
“संतोष”तभी मन में होगा
इन्हें सजा दिलवाऊँ कैसे
मन की व्यथा सुनाऊँ कैसे
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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