हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 15 – सच्ची मोहब्बत ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक बेहतरीन लघुकथा “सच्ची मोहब्बत”। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी की कलम को इस बेहतरीन लघुकथा के माध्यम से युवाओं को वैवाहिक निर्णय लेने के समय भावनाओं का सम्मान रखने का अभूतपूर्व संदेश देने के लिए बधाई ।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 15 ☆
☆ सच्ची मोहब्बत ☆
मोहब्बत कहते ही लगता है कि एक दूसरे के प्रति अटूट प्यार विश्वास और समर्पण की भावना। मोहब्बत किसी से कहीं भी हो सकती है, बस दिल पर गहरा असर हो। गांव के मोहल्ले में एक छोटा सा परिवार सभी के साथ रहता था। माँ-बाप मजदूरी करते और बिटिया नंदिनी और हाथ पैर से अपंग भाई। नंदिनी बहुत सुंदर पढ़ाई लिखाई में तेज और समझदार थी। कहते हैं मजबूरी सब सिखा देती है, ऐसे ही नंदिनी समय से पहले समझदार और अपने कर्तव्य समझने लगी थी। भाई की कमजोरी और माँ-बाप की लाचारी से नंदिनी को सब सीखना पड़ा। स्कूल के साथ-साथ थोड़ा बहुत सबका काम करती थी। पैसे और खाने का सामान मिलने पर उनका खर्च चलने लगा था। शिक्षा पूरा होते ही नंदिनी एक स्कूल की टीचर बन गई। अब थोड़ी राहत हुई। मां बाप भी खुश भाई के इलाज के लिए थोड़े पैसे भी बचा लेती थी। पर मन ही मन नंदिनी भाई को लेकर बहुत परेशान रहती थी। पास पड़ोस में सभी नंदिनी से कहते शादी कर लो नंदिनी पर वह तो घर से बंधी हुई थी। कहती मेरी जिम्मेदारी को देखते हुए कौन मुझसे शादी करेगा। परंतु कहीं ना कहीं सब बातों से आहत होती थी। एक दिन अचानक पिताजी को लकवा यानि कि पैरालिसिस लग गया और बिस्तर पर आ लगे। माँ बेचारी बेटी को लेकर रो-रोकर दिन काटने लगी। एक दिन स्कूल से नंदिनी आई घर में कुछ मेहमान बैठे थे। पता चला नंदिनी की शादी की बात चल रही है। बिल्कुल सादे लिबास में भी नंदिनी का रूप चमक रहा था। मेहमानों के जाने के बाद पिताजी इशारे से बेटी को कहने लगे लड़का अच्छा है, शादी कर ले। नंदिनी ने गुस्से से कहा आप सब के कारण में शादी नहीं कर पाऊंगी। रात में सोचते सोचते नंदिनी के पिता जी सदा-सदा के लिए शांत हो गए। अब तो जैसे घर में बेचैनी का माहौल बनने लगा। भाई भी बहन की परिस्थिति को समझ सकता था। पर हाथ पैर से लाचार कुछ नहीं कर पा रहा था। बस रो लेता था। एक दिन नंदिनी स्कूल से लौटी। माँ ने चाय के साथ उसको एक रजिस्टर्ड लिफाफा पकड़ा दिया। खोलकर नंदिनी ने पढ़ी। आँखों से आँसू गिरने लगे। स्टांप पेपर पर लिखा था –
“मैं अपने होशो हवास से लिख रहा हूं। मैं नंदिनी के माँ और भाई को आजीवन अपने साथ रखूंगा। और किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। बस नंदिनी मेरी जीवन साथी बन जाओ।”
*तुम्हारा सुधांशु*
नंदिनी बार-बार पढ़ रही थी *तुम्हारा सुधांशु* जैसे उसकी सच्ची मोहब्बत हो। खुशी से आँसू गिर रहे थे। चेहरे पर बहुत प्यारी हँसी। माँ और भाई समझ नहीं पा रहे थे। नंदिनी ने आँसू पोंछ कर माँ से कहा शादी की तैयारी करो। माँ और भाई ने कोई सवाल नहीं किया। बस खुशी के मारे मोहल्ले में बताने दौड़ चली। भाई अपनी खुशी गाना गाकर कर रहा था। सुधांशु को *सच्ची मोहब्बत* मिल गई।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश