सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “रंग भरा तोहफ़ा”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 83 ☆
वो सीली सी महक…
वो यादों की चहक…
मजबूर कर रही थी मुझे
कुछ बंद कमरे खोलने के लिए…
कुछ भी तो नहीं था बस में मेरे,
और चल पड़ी मैं
दिल के मकाँ के अन्दर बने
इन ख़ाली-ख़ाली से कमरों में…
धूल से ऐसी मटमैली लग रही थीं दीवारें
और कमरे के कैनवास के रंग इतने मलिन थे,
कि मुड़कर मैं वापस आने ही वाली थी…
पर…पर…नज़र आ गयी वो रंगीन डायरी,
जिसका रंग अभी भी बरक़रार था…
मैंने दीवारों को साफ़ किया,
कैनवास को पोंछा,
और फिर अपने थरथराते हाथों में लिए हुए
वो हसीं सी डायरी,
उसका लम्हा-लम्हा अपने हथेलियों पर रख
उसे निहारने लगी!
उन लम्हों के बुलबुलों में
कुछ ग़म था, तो कुछ ख़ुशी;
पर मेरी छुअन से
ग़म के बुलबुले फूटने लगे
और ख़ुशी के बुलबुले और रंगीन होने लगे!
यह रंग भरा तोहफ़ा
मैंने अपनी रूह की तिजोरी में
क़ैद कर लिया
और ख़ुद को गले से लगाकर कहा
“मुझे तुमसे प्यार है!”
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈