श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “संचालन”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 67 – संचालन

इतना तीखा और कर्कश स्वर होने के बाद भी उन्हें संचालन का दायित्व दे दिया गया था। हर वाक्य में आँय  का प्रयोग भी अखर रहा था। गूगल पर गोष्ठी थी जिसका यू ट्यूब पर वीडियो देखते हुए मन बार – बार व्यथित होता परन्तु सबकी चर्चाएँ सुननी थी, सो मन मार कर न जाने कितनी बार उससे दूर जाने की सोच कर भी हो न जा पाए। 

जैसे ही एक वक्ता का पाठ पूर्ण होता तो  संचालन का अनचाहा स्वर फिर से हृदय को भेद देता।

क्या करें आजकल डिजिटल माध्यम में गाहे- बगाहे कार्यक्रमों की बरसात हो रही है। संयोजक, आयोजक, प्रायोजक, वक्ता। यदि कुछ नहीं है तो वो श्रोतागण हैं। 

अच्छे कार्यक्रमों को सुनने की चाहत के साथ इसे स्वीकार करना ही होगा ऐसा मैं नहीं कह रही ये तो जाने माने संयोजक ने कहा जैसे गुलाब के साथ कांटे।

काँटे और गुलाब की दोस्ती का इतना सुंदर प्रयोग पहली बार देखा है।

सदैव ऐसा होता है कि पौधे के सारे फूल   तोड़कर  हम  उपयोग में ले लेते हैं पर उसका रक्षक काँटा अकेला रहकर  तब तक इंतजार करता है जब तक कली पुष्प बनकर पुष्पित और पल्लवित न  होने लगे किन्तु फिर वही चक्र चलने लगता है पुष्प रूपवान बन जग की शोभा बढ़ाने हेतु डाल से अलग हो जाता है,  शूल पुनः अकेला  यही सोचता रह जाता है कि आखिर उसकी भूल क्या थी …….।

बहुत हुआ तो खेतों की बाड़ी  या राह रोकने हेतु इसका प्रयोग कर लिया जाता है किन्तु  उसमें  भी  लोग  नाक  भौं  सिकोड़ते हुए  बचकर निकल जाते हैं,  साथ ही अन्य लोगों को भी सचेत करते हैं अरे भई काँटे  हैं इनसे दूर रहना। खैर ये तो डिजिटल संचालक हैं सो पसंद न आने पर आगे बढ़ जाने की पूरी छूट का फायदा यहाँ से उठा ही लेते हैं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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