श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता “संतोष के दोहे – प्रथम पूज्य गणराज”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 88 ☆
☆ संतोष के दोहे – प्रथम पूज्य गणराज प्रभु ☆
विघ्न विनाशक गजवदन, एकदन्त भगवान
प्रथम पूज्य गणराज प्रभु, शिव प्रिय कृपा निधान।।1
पीताम्बर धारण किए, शुभगुणकानन रूप।
शरण पड़े हम आपकी, हे देवेश्वर भूप।।2
विद्यावारिधि विघ्नहर, वरद विनायक धाम
विश्वराज सुरपूज्य प्रभु, हे हेरंब प्रणाम।।3
धूम्रकेतु सर्वात्मनम्, शशिवरणं ओंकार।
सुमुख स्वरूपी देववर, करते हम जयकार।।4
मृत्युंजय मूढाकरम, दायक मुक्ति गणेश
मंगल कारक मोरया, मेटो कष्ट कलेश।।5
गजकर्णा, गौरीसुवन, गणाध्यक्ष गजनान।
हे गणपति, गणवक्त्र प्रभु, मंगल मूर्ति महान।।6
अखुरथ, अमित, अलंपता, हे अनन्त, अवनीश।
अखिलेश्वर, क्षेमंकरम, अघ्नाशना हरीश।।7
देवेन्द्राशिक, देवव्रत, देवादेव प्रणाम।
दूर्जा द्वेमातुर प्रभो, करें सफल मम काम।।8
हे हेरम्बा हारिणे, श्री हृदयाय प्रणाम।
हे हरिद्र, हरि ईश प्रभु, तुम ही सुख के धाम।।9
विघ्नराज, विघ्नेश्वरा, विश्वमुखम गणराज।
विकट, विरूपाक्षाय प्रभु, करें सफल सब काज।।10
विघ्न हरण, मंगल करण, गण नायक गुण गान।
शोक विघ्नहर, यशस्कर, हे प्रभु कृपा निधान।।11
हे लम्बोदर, गजवदन, रखो भक्त की लाज।
शुक्लाम्बरम, चतुर्भुजी, हम हर्षित हैं आज।।12
चरण वंदना आपकी, कर पूजन प्रथमेश।
रिद्धि-सिद्धि दातार हे, गौरी पुत्र गणेश।।13
संयुत श्रद्धा-भाव शुचि, पूजें गौरी लाल।
नित नव मंगल हो सदा, कटें कष्ट- जंजाल।।14
चरण-शरण ‘संतोष’तव, बुद्धिहीन,धनहीन।
कृपा दृष्टि प्रभु कीजिये, मुझे समझ कर दीन।।15
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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