डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक अत्यंत विचारणीय  एवं सार्थक आलेख  “गरीबों का विकास”.)

☆ किसलय की कलम से # 51 ☆

☆ गरीबों का विकास ☆

आज से साठ-सत्तर वर्ष पूर्व तक “दो जून की रोटी मिलना” समाज में एक संतुष्टिदायक मुहावरा माना जाता था। घर का मुखिया दिहाड़ी पर जाता था और पूरे घर के उदर-पोषण की जरूरतें पूरी कर लेता था। पूरा परिवार साधारण जीवनशैली से जीवन यापन कर लेता था। शनैःशनैः शिक्षा, प्रगति, फैशन, नई जरूरतें व महत्त्वाकांक्षाओं के चलते श्रमिक समुदाय इन सब के पीछे भागने लगा। मनोरंजन, व्यसन, सुख-सुविधाओं के संसाधन जुटाने को प्राथमिकता देने लगा। जरूरी जीवनोपयोगी आवश्यकताओं के बजाय बाह्याडंबर व गैर जरूरी चीजों हेतु कर्ज तक लेने लगा, तब दैनिक मजदूरी से उसकी ये सब जरूरतें पूरी होना भला कैसे संभव होगा। पहले घर की पत्नी थोड़ा-थोड़ा करके अच्छी खासी रकम बचत के रूप में अपने पास सुरक्षित रख लिया करती थी, जो घर की जरूरतों के अतिरिक्त घर जमीन, जेवर खरीदने, शादी, त्योहार व तीर्थाटन करने में बड़े काम आते थे।  इन परिवारों की बचत उनके सुख-दुख व भविष्य के लिए निश्चिंतता का मुख्य कारक हुआ करते थे। अनावश्यक खर्च, दिखावे, व ‘संतोषी परम सुखी’ की धारणा इनके जीवन को सुखमय बनाए रखने में बड़ी सहायक होती थी। परिवार के अन्य सदस्यों की कमाई और संतानों के नौकरी पेशा होने से परिवारों का उत्तरोत्तर संपन्न होना अक्सर दिखाई देता था।

आज की परिस्थितियाँ इसके एकदम विपरीत हो चली हैं।  हम भले ही गले तक कर्ज में डूब जाएँ लेकिन हमारे शौक व सुख सुविधाओं में कोई कमी नहीं होना चाहिए। वहीं जब आपके द्वारा लिए गए कर्ज के तगादे किए जाते हैं, आपके कर्ज न चुकाने पर धमकियाँ और गालियाँ मिलती हैं। सरेआम बेइज्जती होती है, तब आपका और आपके परिवार का क्या हाल होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। गरीब तबके की महत्वाकांक्षा एवं बाह्याडंबर उनको विकास नहीं विनाश के मार्ग पर ले जाता है।

चिंतन करने पर स्वयं ज्ञात हो जाएगा कि आज का गरीब तबका प्रायः गरीब ही रहता है। इस तबके के लोग न चाहते हुए भी अपनी कमाई को झूठी प्रतिष्ठा के मोह में उन वस्तुओं को क्रय करने और उन सुविधाओं को भोगने में खर्च करते रहते हैं जिनके न रहने पर भी वे छोटी-मोटी परेशानियाँ सहकर सुखी रह सकते हैं। अपनी इन प्रवृत्तियों के कारण ही एक दिन वह उपरोक्त असहज स्थिति में पहुँच जाता है। आज हम देख रहे हैं कि दुनिया की समस्त सुख-सुविधाएँ होने पर भी कुछ लोग उनका उपभोग नहीं कर पाते। कार-हवाई जहाज होने पर भी स्वास्थ्य के  लिए लोग घंटों पैदल चलते हैं। काजू-बादाम और छप्पनभोग उपलब्ध होने पर भी लोग भुने चने और कच्ची सब्जियों का सेवन करने बाध्य होते हैं, फिर भी क्यों आज के लोग इतने ऐशोआराम और फिजूलखर्ची में अपना और अपने परिवार का चैन हराम करने पर तुले रहते हैं।

आज जब शिक्षा का प्रतिशत बढ़ रहा। रोजगार, नौकरियाँ, धंधों की कमी नहीं है, तब हम पहले सुख-समृद्धि को प्राप्त करने हेतु कटिबद्ध क्यों नहीं हो पाते। कुछ करने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। यदि आपको सुख-समृद्धि की चाह है तो पहले आपको शिक्षित होना होगा, परिश्रम करना होगा, प्रयास करने होंगे। कहा भी गया है कि ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।’ इसलिए हमें अपेक्षाएँ और महत्त्वाकांक्षाएँ नहीं परिश्रम, लगन व प्रयास से अवसर तलाशने होंगे, एक-एक पल को सार्थक बनाने का संकल्प लेना होगा। समय के साथ चलने वाले ही आगे बढ़ते हैं, वैसे भी आज की परिस्थितियों में आपको पीछे मुड़कर कौन देखने वाला है।

गरीबों का विकास तभी संभव है जब वे अपना समय और अपनी कमाई को सत्कर्म तथा सत्मार्ग में लगाएँगे। समाज में लोग सत्कर्म, परिश्रम एवं सकारात्मक सोच से ही आगे बढ़ सकते हैं। केवल दो वक्त खाना खाकर तो पशु-पक्षी भी जीवन जी लेते हैं। मानव जीवन की सार्थकता तभी है जब हम सादगी और परमार्थ के मार्ग पर चलते हुए अपना परलोक सँवारें।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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विजय तिवारी " किसलय "

इस आलेख के प्रकाशन हेतु आदरणीय अग्रज श्री बावनकर जी का आभारी हूँ।
– किसलय