प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित भावप्रवण “दोहे “। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 46☆ दोहे ☆
जग में शांति समृद्धि हो, हो सबका कल्याण।
मन में पावन प्रेम हो, यह वर दो भगवान।।
इस जग के हर देश मे, हो शुभ ममता भाव।
पावन प्रिय संवाद का, हो न कोई अभाव।।
युग युग लडी लडाईयाँ, ली बहुतो की जान।
पिछली अटपट चलन तज, मानव बने महान।।
जहाँ बैर वहाँ नाश है, दुख का गहन प्रभाव।
जहाँ प्रेम वहा शांति है, आपस मे सदभाव।।
सही सोच सदवृत्ति से, मन बनता बलवान।
मिटते सबके कष्ट सब, होता शुभ कल्याण।।
पडी हुई हर गांठ की, दवा है मन की बात।
होता ज्ञान प्रकाश जब, कटती काली रात।।
मन है जिसका ड्रायवर, यह तन है वह कार।
अगर ड्रायवर शराबी, खतरो की भरमार।।
मानव मूल्यों का सतत, होता जाता ह्रास।
इससे उठता जा रहा, आपस का विश्वास।।
मन पवित्र तो दिखता है, वातावरण पवित्र।
नहीं कही कोई शत्रु, तब हर जन दिखता मित्र।।
मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।
अपने मन को जीतकर, ही संभव उद्धार।।
पावन मन से ही उपजता, जीवन मे आनंद।
निर्मल मन को ही सदा, मिले सच्चिदानंद।।
शांत शुद्ध मन में नही, उठते कोई विकार।
मन की सात्विक वृत्ति हित, धर्म सबल आधार।।
बुद्धि तो पैनी हुई, पर धुली मन में दुष्टता।
इससे भटके लोग जग के, भूल गये है शिष्टता।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈