श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# कटघरा #”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 46 ☆
☆ # कटघरा # ☆
आज हर कोई व्यस्त है
अपने आप में मस्त है
खुली आंखों से सब देखकर
वो अस्वस्थ है,पस्त है
झोपड़ियाँ उजाड़कर
महल बन रहे हैं
जंगल विस्फोटों से
दहल रहे हैं
पर्यावरण आँसू
बहा रहा है
बाढ़, तूफान
सब कुछ निगल रहे हैं
भूख और प्यास
रास्ते में खड़े है
अधनंगे से
मरणासन्न पड़े है
इनकी सुध
किसी को नहीं है
गरीबी के मुकुट में
सदियों से जड़े हैं
कभी कभी हक के लिए
रास्ते पे उतरते हैं
अपनी जायज मांगों के लिए
आंदोलन करते
फिर अचानक एक
सैलाब आता है
आंदोलन टूटता है
लोग बे मौत मरते है
ऐसे वाकयों से अख़बार
भरे पड़े है
न्याय की आंख पर पट्टी,
मुंह पर ताले जड़े हैं
अब इंसाफ पिंजरे में
बंद है
और हम सब
सभ्य, शिक्षित लोग
समाज के
कटघरे में खड़े है /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈