डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा प्यार । डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस संवेदनशील एवं विचारणीय लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 73 ☆
☆ लघुकथा – प्यार ☆
रविवार का दिन। घर में छुट्टी के दिन सबके काम इत्मीनान से होते हैं। बच्चे तो दस बजे तक सोकर उठते हैं। रिया जल्दी से नहाने चली गई, छुट्टी के दिन सिर ना धो तो फिर पूरे हफ्ते समय ही नहीं मिलता। ऑफिस से लौटते हुए शाम के सात बज जाते हैं। उसने नहाकर पूजा की और रसोई में जाकर नाश्ता बनाने लगी। रविवार को नाश्ता में कुछ खास चाहिए सबको। आज नाश्ते में इडली बना रही है। नाश्ते में ही ग्यारह बज गए। उसने बच्चों को आवाज लगाई खाने की मेज साफ करने को। तभी पति की आवाज सुनाई दी – रिया! मेरी पैंट शर्ट भी वाशिंग मशीन में डाल देना। झुंझला गई – अपने गंदे कपडे भी धोने को नहीं डालते, बच्चे तो बच्चे ही हैं, ये और —
अरे, बारह बज गए, जल्दी से खाने की तैयारी में लग गई। दाल, चावल,सब्जी बनाते – बनाते दो बजने को आए। गरम फुलके खिलाने लगी सबको। तीन बजे उसे खाना नसीब हुआ। रसोई समेटकर कमर सीधी करने को लेटी ही थी कि बारिश शुरू हो गई। अरे, मशीन से निकालकर कपडे बाहर डाल दिए थे , जब तक बच्चों को आवाज लगाएगी कपडे गीले हो जाएंगे, खुद ही भागी। सूखे कपडे तह करके सबकी अल्मारियों में रख दिए, जो थोडे गीले थे कमरे में सुखा दिए। शाम को फिर वही क्रम रात का खाना, रसोई की सफाई— ।
छुट्टी के दिन के लिए कई काम सोचकर रखती है पर रोजमर्रा के काम में ही रविवार निकल जाता है। छुट्टीवाले दिन कुछ ज्यादा ही थक जाती है। छुट्टी का तो इंतजार ही अच्छा होता है बस। आँखें बोझिल हो रही थीं। बिस्तर पर लेटी ही थी कि पति ने धीरे से कंधे पर हाथ रखकर कहा – आज सारा दिन मैं घर पर था पर तुम दो मिनट आकर बैठी नहीं मेरे पास, पता नहीं क्या करती रहीं सारा दिन? प्यार करती हो ना मुझसे? वह जैसे नींद में ही बोली — प्यार? उसके होठों पर मुस्कुराहट आई, पर कुछ बोले बिना ही वह गहरी नींद में सो गई।
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005
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सुंदर भावपूर्ण रचना
आधी आबादी का सच। ?
बहुत ही भावपूर्ण रचना
स्त्री जीवन को लघुकथा के माध्यम से बहुत बड़े अर्थ के साथ प्रस्तुत किया गया है ।
हार्दिक बधाई।
Nice one.
बहुत अच्छी लघु कथा
बेहद प्यारी, नन्हीसी लेकिन दिल को छूने वाली लघुकथा । रिया की कहानी हर उस घर की कहानी है जिस घर की मालकिन नौकरी के लिए प्रति दिन घरसे बाहर निकलती है। आज के जमाने की महंगाई, अच्छे जीवन स्तर की चाह को पूरा करना तथा प्राप्त की हुई शिक्षा का सदुपयोग करना इन सारी बातों को इक तरह से इंसाफ देने के लिए महिला ने नौकरी करना आवश्यक समझा जाता है, इसमें दो राय नही हो सकती। लेकिन नौकरी करनेवाली महिला का व्यस्त शेड्यूल समझने का प्रयास कोई नही करता । हर बात के लिए उस पर निर्भर रहना… Read more »