डॉ राकेश ‘ चक्र’
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे ।
आज से हम प्रत्येक गुरवार को साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत डॉ राकेश चक्र जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें । आज प्रस्तुत है सप्तदशोऽध्यायः।
पुस्तक इस फ्लिपकार्ट लिंक पर उपलब्ध है =>> श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 77 ☆
☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – सप्तदशोऽध्यायः ☆
स्नेही मित्रो सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद मेरे द्वारा श्रीकृष्ण कृपा से दोहों में किया गया है। पुस्तक भी प्रकाशित हो गई है। आज आप पढ़िए सत्रहवाँ अध्याय। आनन्द उठाइए।
– डॉ राकेश चक्र।।
☆ सत्रहवाँ अध्याय – श्रद्धा के विभाग क्या हैं? ☆
अर्जुन ने श्रीकृष्ण भगवान से पूछा-
नियम-शास्त्र ना मानते, करते पूजा मौन।
स्थिति मुझे बताइए, सत, रज, तम में कौन।। 1
श्रीकृष्ण भगवान ने सात्विक, राजसिक, तामसिक पूजा और भोजन आदि के बारे में अर्जुन को ज्ञान दिया–
सत, रज, तम गुण तीन ही, अर्जित करती देह।
जो जैसी श्रद्धा करें, बता रहा प्रिय ध्येय।। 2
श्रद्धा जो विकसित करें, सत, रज, तम अनुरूप।
अर्जित गुण वैसे बनें, जैसे छाया- धूप।। 3
सतोगुणी पूजा करें, सब देवों की मित्र।
रजोगुणी पूजा करें, यक्ष-राक्षस पित्र।।4
तमोगुणी हैं पूजते, भूत-प्रेत की छाँव।
जो जैसी पूजा करें, वैसी मिलती ठाँव।। 4
दम्भ, अहम, अभिभूत हो, तप-व्रत सिद्ध अनर्थ।
शास्त्र रुद्ध आसक्ति से, पूजा होती व्यर्थ।। 5
ऐसे मानव मूर्ख हैं, करें तपस्या घोर।
दुखी रखें जो आत्मा, वही असुर की पोर।। 6
जो जैसा भोजन करें, उसके तीन प्रकार।
यही बात तप, दान की, यज्ञ वेद सुन सार।। 7
सात्विक भोजन क्या है
सात्विक भोजन प्रिय उन्हें, सतोगुणी जो लोग।
वृद्धि करे सुख-स्वास्थ्य की, आयु बढ़ाता भोज।। 8
गरम, राजसी चटपटा, तिक्त नमक का भोज।
रजोगुणी को प्रिय लगे, देता जो दुख रोग।। 9
तामसिक भोजन क्या है
पका भोज यदि हो रखा,एक पहर से जान
बासा, जूठा खाय जो, वही तामसी मान। 10
बने वस्तु अस्पृश्य से, वियोजिती जो भोज।
स्वादहीन वह तामसी, करे शोक और रोग।। 10
सात्विक यज्ञ क्या है
सात्विक होता यज्ञ वह, जो कि शास्त्र अनुसार।
समझें खुद कर्तव्य को, फल की चाह बिसार। 11
राजसिक यज्ञ क्या है
होता राजस यज्ञ वह, जो हो भौतिक लाभ।
गर्व, अहम से जो करें, मन में लिए प्रलाभ।। 12
तामसिक यज्ञ क्या है
तामस होता यज्ञ वह, जो हो शास्त्र विरुद्ध।
वैदिक मंत्रों के बिना, होता यज्ञ अशुद्ध।। 13
शारिरिक तपस्या क्या है
ईश, गुरू, माता-पिता, ब्राह्मण पूजें लोग।
ब्रह्मचर्य पावन सरल, यही तपस्या योग।। 14
वाणी की तपस्या क्या है
सच्चे हितकर बोलिए, मुख से मीठे शब्द।
वेद साहित्य स्वाध्याय ही, तप वाणी यह लब्ध।। 15
मन की तपस्या
आत्म संयमी मन बने, रहे सरल संतोष।
शुद्ध बुद्धि जीवन रहे, धैर्य तपी मन घोष।। 16
सात्विक तपस्या
लाभ लालसा से रहित, करें ईश की भक्ति।
दिव्य रखें श्रद्धा सदा, यही सात्विक वृत्ति।। 17
राजसी तपस्या
दम्भ और सम्मान हित, पूजा हो सत्कार।
यही राजसी तपस्या,नहीं शाश्वत सार।। 18
तामसी तपस्या
आत्म-उत्पीड़न के लिए, करें हानि के कार्य।
यही तामसी मूर्ख तप, करें विनिष्ट अकार्य।। 19
सात्विक दान
करें दान कर्तव्य हित, आश न प्रत्युपकार।
काल देख व पात्रता, ये सात्विक उपकार।। 20
राजसी दान
पाने की हो भावना, हो अनिच्छु प्रतिदान।
फल की इच्छा जो रखे, यही राजसी दान।। 21
तामसी दान
अपवित्र जगह में दान हो, अनुचित हो असम्मान।
अयोग्य व्यक्ति को दान दें, यही तामसी दान।। 22
ईश्वर का आदि काल से चला आ रहा सर्वश्रेष्ठ नाम क्या है
हरिः ॐ, तत, सत यही,मूल सृष्टि का मंत्र।
श्रेष्ठ जाप यह ब्रह्म का,यही वेद का मन्त्र।। 23
ब्रह्म प्राप्ति शास्त्रज्ञ विधि, से हो जप तप, दान।
ओमकार शुभ नाम से, सबका हो कल्यान।। 24
दान, यज्ञ, तप जो करें, ‘तत’ से हो सम्पन्न।
फल की इच्छा मत करें, तब हों प्रभू प्रसन्न।। 25
यज्ञ लक्ष्य हो भक्तिमय, परम् सत्य, ‘सत’ शब्द।
यज्ञ करें सम्पन्न जो, सर्वश्रेष्ठ सत् लब्ध ।। 26
यज्ञ,दान तप साधना, सभी कर्म प्रभु नाम।
हों प्रसन्न परमा पुरुष, ‘सत’ को करें प्रणाम।। 27
यज्ञ, दान, तप जो करें, बिन श्रद्धा के कोय।
असत् कर्म नश्वर सभी, व्यर्थ सभी कुछ होय।। 28
इति श्रीमद्भगवतगीतारूपी उपनिषद एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन संवाद में ” श्रद्धा के विभाग ब्रह्मयोग ” सत्रहवाँ अध्याय समाप्त।
© डॉ राकेश चक्र
(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)
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