सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “इबादत”। )
साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 8
☆ इबादत ☆
एक मुट्ठी धूल सी
मेरी हैसियत;
और एक मामूली तिनके सी
मेरी हस्ती!
ए ख़ुदा!
इबादत है तुझसे
कि बिछ जाने दे मुझे
उस धूल ही की तरह
तेरी राहों पर,
बिना किसी मंज़िल की
तमन्ना किये!
या फिर उड़ जाने दे मुझे
उस तिनके की तरह
हवाओं के साथ,
तब तक,
जब तक ख़त्म न हो जाएँ
मेरी सारी आरज़ू!
राख़ हो जाने दे
मेरा गुरूर,
मिट जाने दे
मेरा अहम्,
और दूर हो जाने दे
मेरा गुमान!
ए ख़ुदा!
मैं आना चाहती हूँ पास तेरे
एकदम खाली-खाली सी,
किसी कोरे कागज़ की तरह!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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