डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना “बहे विचारों की सरिता……”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 14 ☆
☆ कविता – बहे विचारों की सरिता…… ☆
सुखद कल्पनाओं में
मन के स्वप्न सुनहरे से
बहे विचारों की सरिता
हम, तट पर ठहरे से।
दुनियावी बातों से
बार-बार ये मन भागे
जुड़ने के प्रयास में
रिश्तों के टूटे धागे,
हैं प्रवीण,
फिर भी जाने क्यूं
जुड़े ककहरे से
बहे विचारों की सरिता
हम तट……………….।
रागी, भ्रमर भाव से सोचें
स्वतः समर्पण का
उथल-पुथल अंतर की
शंकाओं के तर्पण का,
पर है डर,
बाहर बैठे
मायावी पहरे से
बहे विचारों की सरिता
हम तट पर………….।
जिसने आग लगाई उसे
पता नहीं पानी का
क्या होगा निष्कर्ष
अजूबी अकथ कहानी का,
भीतर में हलचल,
बाहर हैं
गूंगे- बहरे से
बहे विचारों की सरिता
हम तट पर………….।
चाह तृप्ति की, अंतर में
चिंताओं को लादे
भारी मन से किये जा रहे
वादों पर वादे,
सुख की सांसें तभी मिले
निकलें
जब गहरे से
बहे विचारों की सरिता
हम तट पर ठहरे से।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
(अग्रज डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की फेसबुक से साभार)