श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण गीतिका “कैसे मैं खुद को, गहरे तल में उतार दूँ”। )
☆ तन्मय साहित्य #103 ☆
☆ कैसे मैं खुद को, गहरे तल में उतार दूँ☆
(गीतिका)
बने रहो आँखों में ही, मैं तुम्हें प्यार दूँ
नजर, मिरच-राईं से, पहले तो उतार दूँ ।
दूर रहोगे तो, उजड़े-उजड़े पतझड़ से
अगर रहोगे साथ मेरे, तो मैं बहार दूँ।
जलती रही चिताएँ, निष्ठुर बने रहे तुम
कैसे नेह भरे जीवन का, ह्रदय हार दूँ।
प्रेम रोग में जुड़े, ताप से कम्पित तन-मन
मिला आँख से आँख, तुम्हें कैसे बुखार दूँ।
सुख वैभव में रमें,रसिक श्री कृष्ण कन्हाई
जीर्ण पोटली के चावल, मैं किस प्रकार दूँ।
चुका नहीं पाया जो, पिछला कर्ज बकाया
मांग रहा वह फिर, उसको कैसे उधार दूँ।
पानी में फेंका सिक्का, फिर हाथ न आया
कैसे मैं खुद को, गहरे तल में उतार दूँ ।
दायित्वों का भारी बोझ लिए काँधों पर
चाह यही हँसते-हँसते, जीवन गुजार दूँ।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈