हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 16 ☆ हैरान हूँ ! ☆ – डॉ. मुक्ता
डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का कविता हैरान हूँ ! डॉ . मुक्ता जी ने इस कविता के माध्यम से आज के हालात पर अपनी बेबाक राय रखी है. जयंती, विशेष दिवस हों या कोई त्यौहार या फिर कोई सम्मान – पुरस्कार , कवि सम्मलेन या समारोह एक उत्सव हो गए हैं और ये सब हो गए हैं मौकापरस्ती के अवसर. अब आप स्वयं पढ़ कर आत्म मंथन करें इससे बेहतर क्या हो सकता है? आदरणीया डॉ मुक्त जी का आभार एवं उनकी कलम को इस पहल के लिए नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 16 ☆
☆ हैरान हूं! ☆
हैरान हूं!
आजकल कवि-सम्मेलनों की
बाढ़ देख कर
डर है कहीं सैलाब आ न जाये
जयंती हो या हो पुण्यतिथि
होली मिलन हो या दीवाली की शाम
ईद हो या हो बक़रीद
हिंदी दिवस हो या शिक्षक दिवस
या हो नववर्ष के आगमन की वेला
सिलसिला यह अनवरत चलता रहता
कभी थमने का नाम नहीं लेता
वैसे तो हम आधुनिकता का दम भरते हैं
लिव-इन व मी टू में खुशी तलाशते हैं
तू नहीं और सही को आज़माते हैं
परन्तु ग़मों से निज़ात कहां पाते हैं
आजकल कुछ इस क़दर
बदल गया है, ज़माने का चलन
मीडिया की सुर्खियों में बने रहने को
हर दांवपेच अपनाते हैं
पुरस्कार प्राप्त करने को बिछ-से जाते हैं
पुरस्कृत होने के पश्चात् फूले नहीं समाते हैं
और न मिलने पर अवसाद से घिर जाते हैं
जैसे यह सबसे बड़ी पराजय है
जिससे उबर पाना नहीं मुमक़िन
आओ! अपनी सोच बदल
सहज रूप से जीएं
इस चक्रव्यूह को भेद
मन की ऊहापोह को शांत करें
अनहद नाद की मस्ती में खो जाएं
स्व-पर, राग-द्वेष से ऊपर उठ
अलौकिक आनंद में डूब जाएं
जीवन का उत्सव समझ
जीते जी मुक्ति पाएं
जीवन को सफल मनाएं
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
मो• न•…8588801878