श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “पहल”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 91 ☆
☆ लघुकथा — पहल ☆
दोनों शिक्षिका रोज देर से शाला आती थी. उन्हें बार-बार आगाह किया मगर कोई सुधार नहीं हुआ. एक बार इसी बात को लेकर शाला निरीक्षक ने प्रधान शिक्षिका को फटकार दिया. तब उसने सोचा लिया कि दोनों शिक्षिका की देर से आने की आदत सुधार कर रहेगी.
” ऐसा कब तक चलेगा?” प्रधान शिक्षिका ने अपने शिक्षक पति से कहा,” आज के बाद इनके उपस्थिति रजिस्टर में सही समय अंकित करवाइएगा.”
” अरे! रहने दो. उनके पति नेतागिरी करते हैं.”
” नहीं नहीं, यह नहीं चलेगा. वे रोज देर से आती हैं और उपस्थिति रजिस्टर में एक ही समय लिखती हैं. क्या वे उसी समय शाला आती हैं?”
” अरे! जाने भी दो.”
” क्या जाने भी दो ?” प्रधान शिक्षिका ने कहा,” आप उनको नोटिस बनाते हो या मैं बनाऊं?”
” ऐसी बात नहीं है.”
” फिर क्या बात है स्पष्ट बताओ?”
” पहले तुम तो समय पर आया करो, ताकि मैं भी समय पर शाला आ पाऊं,” शिक्षक पति ने कहा,” तभी हमारे नोटिस का कुछ महत्व होगा, अन्यथा…” कह कर शिक्षक पति चुप हो गया.
वाचाल प्रधान शिक्षिका ने इसके आगे कुछ कहना ठीक नहीं समझा.
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