डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 104 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
पाती तुमको लिख रही,
लिखती हूं अविराम।
शब्द शब्द में है रचा,
बस तेरा ही नाम।।
नेह निमंत्रण दे रहे,
इसे करो स्वीकार।
आपस के संबंध में,
नहीं जीत या हार।।
पीड़ित मन से पूछ लो,
अंतर्मन की आग।
कैसे समझेंगे भला,
फूटे जिनके भाग।।
झरने झील पहाड़ की ,
करो न कोई बात।
याद मुझे आने लगी ,
वही सुहानी रात।।
मृगनयनी सा रुप है,
तू जंगल की हीर।
दिखता तुझको लक्ष्य है,
साधे बैठी तीर।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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