डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 62 – दोहे
रोई ब्रज की गोपिका, रोए थे नंदलाल।
चुप्पी साधे राधिका, आंसू करे सवाल।
आंसू का इतिहास है आशु का भूगोल ।
आंसू का विज्ञान अब, रहस्य रहा है खोल।।
आंसू है संवेदना आंसू, मन की पीर।
यशोधरा का रूप है ,जसोदा की जंजीर।।
जनक दुलारी चल पड़ी ,ओढ़ अश्रु का चीर ।
आंसू डूबी अयोध्या, राम मौन गंभीर ।।
घनानंद का अश्रुधन ,अर्पित कृष्ण सुजान।
उसी अश्रु की धार में ,डूबे थे रसखान ।।
आंसू डूबी सांस से, रचित ईश्वरी फाग।
रजउ ब्रह्म थी ,जीव थी ,ऐसा था अनुराग।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति