श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “व्यस्तता के चलते”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 74 – व्यस्तता के चलते

आजकल जिसे देखो वही व्यस्त है। कभी फोन खुद   कह उठता है, इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं। कल  मैंने 10 जगह फोन लगाया, मजे की बात सारे लोगों ने फोन उठाते, यही कहा, बस एक मिनट में बात करते हैं। दरसल वे कहीं न कहीं बातों में व्यस्त थे। हालाकि सभी ने 5 मिनट के भीतर फोन लगाया भी किन्तु दिल ये सोचने पर विवश हो गया कि क्या सचमुच हम लोगों का मोबलाइजेशन हो गया है। मोबोफ़ोबिया से केवल नई पीढ़ी ही नहीं हम सब भी ग्रसित हो चुके हैं। 

डिजिटल होना अच्छी बात है किंतु आपसी मेलजोल के बदले फोन पर ही मिलना- मिलाना किस हद तक उचित कहा जा सकता है। ये सही है कि लोगों के पास समय की कमीं है, अब महिलाएँ भी दोहरी भूमिका निभा रहीं हैं इसलिए मेहमान नवाजी से उन्होंने भी थोड़ी दूरी बना ली है। हम लोग केवल किसी कार्यक्रम में ही मिल पाते हैं जहाँ केवल औपचारिक बातें होती हैं। इन सबसे वो अपनापन कम होता जा रहा है जो पहले दिखाई देता था। 

सारे मुद्दे फोन पर बातचीत से निपटने लगे हैं। भाव – भावनाओं की पूछ – परख कम होती दिखाई देती है। बस मतलबी रिश्तों में उलझता हुआ व्यक्ति उसी के साथ संवाद कायम रखना चाहता है जिससे कुछ लाभ हो। लाभ की बात चले और हानि की तरफ ध्यान न जाए ऐसा हो नहीं सकता। हम सब केवल अपने फायदे का आकलन करते हुए झट से अपनी राय सामने वाले पर थोप देते हैं। जरा ये भी तो सोचिए कि एक के लिए जो अच्छा हो वो जरूरी नहीं कि दूसरे को अच्छा लगे। हम लोग अपनेपन की बातें करते हैं पर निभाने के समय दूसरे के व्यवहार व स्टेटस के अनुरूप आचरण करते हैं।

सम्बंधों को बनाए रखने हेतु समय- समय पर मिलते रहना चाहिए। मन से कार्य करते रहिए बिना फल की आशा किए। याद रखिए कि यदि आम का बीज आपने बोया है, तो आम  मिलेगा बस सही समय का इंतजार करना होगा।

हममें से अधिकांश लोग नेह रूपी बीज तो बोते हैं, पर अंकुरण होते  ही  फल की आशा में जड़  खोदने लग जाते हैं , अरे मूल ही तो आधार है वृक्ष का इसकी मजबूती पर ही तो तना व शाखाएँ निर्भर हैं। यही बात रिश्तों पर भी लागू होती है उसे समझने के लिए त्याग और वक्त देना पड़ता है तभी मिठास आती है।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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