श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण रचना “कहाँ चल दिये ….”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 94 ☆
☆ कहाँ चल दिये…. ☆
छोड़ कर आधी कहानी, कहाँ चल दिये
दे कर आँखों में पानी, कहाँ चल दिये
हमको था फकत आसरा आपका
तोड़ कर ये ज़िंदगानी,कहाँ चल दिये
सबक वफ़ा का सीखा ना आपने
खूब करी खुद मनमानी,कहाँ चल दिये
वादा निभाया ना आपने कभी
छीन कर अब ये जवानी,कहाँ चल दिये
तोड़ के रिश्ते पल भर में सारे
नींद चुरा कर मस्तानी,कहाँ चल दिये
मिलता न “संतोष” कभी आसां से
भूल कर सभी नादानी,कहाँ चल दिये
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित