डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 105 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
देखो कैसे साल भर,
रहता है उजियार।
दीपों की ये रोशनी,
दूर करे अंधियार।।
धानी चूनर ओढ़कर,
प्रकृति करे शृंगार।
धरा प्रफुल्लित हो रही,
हरा-भरा संसार।।
लज्जा का घूँघट करो,
धीमे बोलो बोल।
मिल-जुलकर सबसे रहो,
जीवन है अनमोल।।
प्रीति रखी है श्याम से,
जग के पालन हार।
जिनकी महिमा है अमित,
करते नैया पार।।
मन की गहरी वेदना,
नयन बहाते नीर।
नयनों की भाषा पढ़ो,
तब समझोगे पीर।।
नयन-तीर से कामिनी,
करती हृदय-शिकार।
मुझको भी होने लगा,
उससे सच्चा प्यार।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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