श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है पारिवारिक विमर्श पर आधारित एक संवेदनशील लघुकथा “आलौकिक आभा”। इस विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 104 ☆
लघुकथा – आलौकिक आभा
पुराने दियों को समेटते समेटते आभा का मन एक बार फिर पुरानी बातों को सोचने पर विवश हो उठा। वृद्धावस्था में मां पिताजी का साथ छोड़ कर, अपने परिवार को लेकर प्रकाश उसी शहर में अलग रहने लगा था।
दोनों बच्चे पढ़ाई कर रहे थे और पतिदेव पेपर पर नजर गड़ाए समाचारों पर लिखे राजनीति की चर्चा फोन पर कर रहे थे। सुनिए… आज मां पिताजी से मिलने चलते हैं। आभा ने पास आकर कहा। तिलमिला उठा प्रकाश… तुमने सोचा भी कैसे कि मैं वहां जाऊंगा? मेरे परिवार से कोई रिश्ता नहीं है उन दोनों का और हां तुम भी वहां नहीं जाना। कोई जरूरत नहीं है दया दिखाने की।
आभा के चेहरे पर दीपावली की सारी खुशियां जाती रही। दीये का प्रकाश क्या? सिर्फ एक काली अमावस के लिए होता है? नहीं, मन में निर्णय कर वह काम पर लग गई।
शाम को पति देव घर आए टेबिल पर सजा खाना देख बहुत ही खुश होकर पास आकर कहा… कोई मेहमान आने वाले हैं क्या? आभा ने कहा.. नहीं, बस यूं ही आज जल्दी खाना बना लिया।
हाथ मुंह धोकर वह बच्चों के साथ बैठा और खाने का स्वाद जाना पहचाना आ जाने के बाद उसकी आंखें भर आई।
आभा की तरफ कुछ कहने ही जा रहा था कि दूसरे कमरे से मां लगभग हंसते रोते हुए निकलकर आई और कहने लगी… सच ही कहा बहू तूने, प्रकाश अपने मां पिताजी को कभी भुला नहीं सकता। बस थोड़ा लापरवाह और जिद्दी हो गया है।
सिर पर हाथ सहलाती मां अपने प्रकाश को मानों बाहों में समेटना चाह रही थी। तभी पिताजी बाहर आकर कहने लगे… अरी भाग्यवान आज तो प्रकाश को समेटों नहीं उसका अलौकिक प्यार फैलने दो ताकि हम सब उस का आनंद ले सकें।
यह कहकर उन्होने भी प्रकाश को मां के साथ सीने से लगा लिए। प्रकाश कुछ समझता या कहता। आभा ने सभी को कहा… विश यू वेरी हैप्पी दिवाली। आप सभी को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ और बधाइयाँ।
आज सच मानिए दीये की अलौकिक आभा चमक रही थी। मन ही मन अपने परिवार को समेट कर।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈