प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 54 ☆ गजल ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆
प्यार-ममता की मधुर हर खुशी आज अतीत हो गई
नये जमाने की अचानक पुराने पै जीत हो गई
क्योंकि भटकी भावना सद्बुद्धि के विपरीत हो गई।
शांति -सुख लुट गये घरों के हर तरफ बेचैनियॉं है
नासमझदारी समय की शायद प्रचलित रीति हो गई।
स्वार्थ के संताप में तप झुलस गये रिश्ते पुराने
काम के संबंध पनपे, मन की पावन प्रीति खो गई।।
भाव-सोच-विचार बदले, सबों के आचार बदले
गहन चिंतन-मनन गये, उथले चलन से प्रीति हो गई।
सादगी सद्भावना शालीनता गुम से गये सब
मौजमस्ती, मनचलेपन, नग्नता की जीत हो गई।
पुरानी संस्कृति चली मिट, मान-मर्यादायें मर्दित
चुलबुलापन, चपलता, नई सभ्यता की रीति हो गई।।
सांस है सांसत में, अब हर दिन दुखी रातें अपावन
रो रहा हर बुढ़ापा जब से जवानी गीत हो गई।।
नई हवा जब से चली है, बढ रहे झोके झकोरे
प्यार ममता की मधुर अभिव्यक्ति, आज अतीत हो गई।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈