सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “इश्क”। )
साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 9
☆ इश्क ☆
जाते हुए मुसाफ़िर के
सीने से लगकर
लाख गुज़ारिश की जाए,
हज़ारों मन्नतें माँगी जाएँ,
इश्क़ की दुहाई दी जाए,
पर उसे अगर जाना होता है
तो वो ठहरता नहीं है…
बाद अजब है यह इश्क़ भी,
जब बोलना चाहिए
वो लबों पर ऊँगली लगाकर
ख़ामोश हो जाता है,
और जाने वाले को
रोकता भी नहीं!
शायद वो भी जाने के बाद
जान ही जाएगा
इकरार का एहसास,
पर तब तक
बहुत देर हो चुकी होगी!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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