प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 55 ☆ गजल ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆
ईमानदारी औरों को सिखला रहे हैं लोग
पर जब जहाँ मौका मिला, खुद खा रहे हैं लोग।
छोटों की बात क्या करें, नेता जो बड़े हैं
बेखौफ करोड़ों उड़ाये जा रहे हैं लोग।
अब नीति-न्याय-धर्म की बातें फिजूल हैं
जो सामने, उसको भुनाये जा रहे है लोग।
ईमानदार लोगों पै बेईमान हँस रहे
निर्दोष भले व्यक्ति से, कतरा रहे है लोग।
दामन थे जिनके साफ वे अब लोग कहॉं है ?
रेवड़ियॉं बॅट रहीं, उठाये जा रहे हैं लोग।
गलियों में भी बाजार है, छलियों की है भरमार
डलियों में अब ’विदग्ध’ ढोये जा रहे हैं लोग।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈