(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित एक विचारणीयआलेख ‘इच्छा मृत्यु । इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 127☆
इच्छा मृत्यु
राजा शांतनु सत्यवती से विवाह करना चाहते थे. किंतु सत्यवती के पिता ने शर्त रख दी कि राज्य का उत्तराधिकारी सत्यवती का पुत्र ही हो. अपने पिता की सत्यवती से विवाह की प्रबल इच्छा को पूरा करने के लिए गंगा पुत्र भीष्म ने अखंड ब्रह्मचार्य की प्रतिज्ञा ले ली. पिता के प्रति प्रेम के इस अद्भुत त्याग से प्रसन्न हो, उन्होने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था.
किंतु पितामह भीष्म को बाणों की शैया पर मृत्यु की प्रतीक्षा करनी पड़ी. भीष्म शर शैया पर दुखी थे और उनकी इस अवस्था पर भगवान कृष्ण मुस्करा रहे थे.
दूसरी ओर यह समझते हुये भी कि सीता हरण कर भागते रावण को रोक पाना उसके वश में नहीं है, जटायु ने रावण से भरसक युद्ध किया. घायल जटायु को लेने यमदूत आ पहुंचे, किंतु जटायु ने मृत्यु को ललकार कर कहा, जब तक मैं इस घटना की सूचना, प्रभु श्रीराम को नहीं दे देता मृत्यु तुम मुझे छू भी नहीं सकती. जटायु ने स्वयं ही जैसे इच्छा मृत्यु का चयन कर लिया.
श्रीराम सीता को ढ़ूंढ़ते हुये आये, जटायु से उन्हें सीताहरण की जानकारी मिली. जटायु ने अपनी अंतिम सांसे भगवान श्रीराम की गोद में लीं. भगवान दुखी थे और जटायु स्वयं की ऐसी इच्छा मृत्यु पर प्रसन्न थे.
भीष्म पितामह और जटायु दोनो ने ही इच्छा मृत्यु का वरण किया. किन्तु अंतिम पलों में दोनो की मृत्यु में विरोधाभास. .. कदाचित इसलिये क्योंकि भीष्म ने स्वयं की लाज बचाने के लिये बिलखती द्रौपदी की चीत्कार अनसुनी कर दी थी, तो दूसरी ओर सीता जी की रक्षा का सामर्थ्य न होते हुये भी जटायु ने स्वयं को दांव पर लगा दिया था.
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