श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपके बचपन के संस्करण ‘बचपन के दिन….’ )
☆ संस्मरण # 112 ☆ बचपन के दिन…. ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆
बचपन के दिनों को जिंदगी के सबसे सुनहरे दिनों में गिना जाता है। ये वो सबसे खास पल होते हैं, जब न ही किसी चीज की चिंता होती है और न ही किसी चीज की परवाह। हर किसी के बचपन का सफर यादगार और हसीन होता है, इसलिए अक्सर लोगों से मुंह से यह कहते जरूर सुना होगा कि ‘वो दिन भी क्या दिन थे’
बचपन पचपन के बाद थोड़ा ज्यादा याद आता है,
कंचे खेलते वे दिन,
पतंग लूटने की जद्दोजहद,
गिल्ली डंडा की उड़ती हुई गिल्ली,
तितली पकड़ने की भाग-दौड़,
कागज के हवाई जहाज का क्लास रूम में उड़ाना,
समय बिताने के लिए करना है कुछ काम,
हरी थी, मन भरी थी,
लाख मोती जड़ी थी,
राजा जी के बाग में
दुशाला ओढ़े खड़ी थी,
अखण्ड अंताक्षरी के मजे।
मोर-पंख किताबों में छुपाना,
स्कूल की छुट्टी होने पर
दौड़ते- भागते
एक दूसरे को टंगड़ी मारना,
वो सच, वो झूठ, वो खेल, वो नाटक, वो किस्से, वो कहानी
परियों वाली……
जबलपुर के नरसिंह बिल्डिंग परिसर में हमारा बीता बचपन,
नरसिंह बिल्डिंग में भले 60-70 परिवार रहते थे पर नरसिंह बिल्डिंग परिसर भरा पूरा एक परिवार लगता था । सभी हम उम्र के दोस्तों के असली नाम के अलावा घरेलू चलतू निक नेम थे, जो बोलने बुलाने में सहज सरल भी होते थे, जो उन 60-70परिवार के लोग बड़ी आत्मीयता से बोलते थे, निक नेम से ही सब एक दूसरे को जानते थे, जैसे फुल्लू, गुल्लू, किस्सू, गुड्डू, मुन्ना, मुन्नी, सूपी, राजू, राजा, नीतू, संजू, बबल, लल्ला, बाला, जग्गू आदि … आदि, सभी सुसंस्कारवान और सबका लिहाज और सम्मान करने वाले…….
तो एक दिन अचानक जयपुर से फुल्लू भाई (अनूप वर्मा) का फोन आया कि नरसिंह बिल्डिंग के फ्लैट नंबर 22 में 46 साल पहले रहने वाले मिस्टर कुमार नासिक से जबलपुर पहुँचे हैं और 46 साल पुरानी यादों को ताजा करने वे नरसिंह बिल्डिंग पहुचे हैं,अनूप ने नंद कुमार का फोन नंबर भी भेजा, हमने कुमार से बात की, पता चला कि वे मानस भवन के पास की पारस होटल में रूके हैं, 46 साल बाद पहली बार किसी को देखना और मिलकर पहली बार बात करना कितना रोमांचक होता है,जब हम और कुमार ने नरसिंह बिल्डिंग के उन पुराने दिनों के एक एक पन्ने को याद करना चालू किया,कुछ हंसी के पल,कुछ पुराने अच्छे लोगों के बिछड़ जाने की पीड़ा आदि के साथ कुमार ने सब परिवारों को दिल से याद किया, लाल ज्योति की याद आई, जग्गू और किस्सू को याद किया,मुरारी से मुलाकात का जिक्र आया,तो छत में रहने वाली नर्स बाई के जग्गू की बात हुई,रवि कल्याण,मीरा,चींना याद आए,ऊधर बिशू राजा ललिता से लेकर साधना, सूपी, शोभा, चिनी, मुन्नी, विनीता, संजू, भल्ला आदि सब कहाँ और कैसे की कुशलक्षेम बतायी गई, सात समंदर पार बैठी जया,नीलम, बड़े फुल्लू,अरविन्द,और सरोज दीदी को भी याद किया, 46 सालों का लेखा जोखा की बात करते हुए कुमार ने हंसी की फुलझड़ियां छोड़ते हुए बताया कि हमारे घर के नीचे फ्लैट नंबर 7और फ्लैट नंबर ८ में ‘ई एस आई’ का अस्पताल था जिसमें नीले रंग का छोटा सा बोर्ड लगा था जिसमें लिखा था “छोटा परिवार सुखी परिवार ” पर डिस्पेंसरी के ऊपर नौ बच्चे का परिवार, डिस्पेंसरी के बाजू में नौ बच्चों का परिवार फिर बोर्ड में लिखी इबारत का नरसिंह बिल्डिंग में कितने घरों में पालन की समीक्षा में लगा कि नरसिंह बिल्डिंग में नौ बच्चे के परिवार खूब थे,पर गजब ये था कि सभी परिवारों में, अदभुत तालमेल और अपनत्व भाव था, पूरा भारत देश उस नरसिंह बिल्डिंग परिसर में बसा था, सभी त्यौहार सभी मिलजुल कर मनाते, एक नरसिंह बिल्डिंग परिसर ऐसी फलने वाली जगह थी जहाँ हर तरफ से सबके पास विकास के दरवाजे खुले मिले हर किसी ने हर फील्ड में उन्नति पाई ।
कुछ दिन बाद जयपुर से खबर आई कि मित्र छोटा फुल्लू (अनूप वर्मा) नहीं रहा, उसके साथ बिताए बचपन के दिन याद आये तो इतना सारा लिख दिया।
बचपन की सारी यादें साथ हैं,
वे सारे लम्हें मेरे लिए खास हैं।
© जय प्रकाश पाण्डेय