श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# महापरिनिर्वाण दिवस – 6 डिसेंबर 1956 #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 57 ☆
☆ #महापरिनिर्वाण दिवस – 6 डिसेंबर 1956 # ☆
(बाबासाहेब के परिनिर्वाण पर आचार्य अत्रे जी के एक लेख से प्रेरित श्रद्धांजलि स्वरुप कविता)
शोषितों का उध्दारक
भ्रमितों का उपदेशक
अंधेरों का प्रकाशपुंज
आज अस्त हो गया
अंबर झुक गया
समय रूक गया
दिशाओं ने क्रंदन किया
मानव पस्त हो गया
गली गली में हाहाकार मच गया
घर घर में अंधकार बस गया
विधाता ने छीन लिया
हम सबका “बाबा “
अनाथों का दुःखी
संसार रच दिया
दौड़ पड़े मुंबई रेले के रेले
सुध नहीं थी कि
रूककर दम भी ले लें
आंखों से बहती धारा
हर एक था दुःख का मारा
आर्तनाद कर रहे थे
तू हमको भी उठाले
हर गली, गांव,कस्बा, शहर
वीरान हो गया
पल भर में एक शमशान हो गया
चूल्हें नहीं जले,
दीयें नहीं जलें
सर पटकर बिलखता
हर इंसान हो गया
मुंबई में जैसे
जन सैलाब आ गया
हर वर्ग के लोगों का
“सहाब” आ गया
पथ पर दौड़ते
दर्शन को प्यासे लोग
उनके आंखों का
टुटता हुआ ख्वाब आ गया
दादर की चैत्यभूमी पर है वो सोया
जिस व्यक्ति के निर्वाण पर
हर कोई है रोया
आज ही के दिन
हर वर्ष
यहां लगता है मेला
यहीं पर हम सबने
अपना “भीम” है खोया
ऐसे निर्वाण के लिए
“देव “भी तरसते होंगे
उनके हाथों से आकाश से
पुष्प बरसते होंगे
जीते जी जो इन्सान
” भगवान ” बन गया
उसके स्वर्ग आगमन से
वे भी लरजतें होंगे /
© श्याम खापर्डे
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