(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित एक विचारणीय व्यंग्य ‘हिंडोले ’ । इस विचारणीय व्यंग्य के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 131 ☆
व्यंग्य – हिंडोले
पत्नी मधुर स्वर में भजन गा रहीं थीं . “कौन झूल रहे , कौन झुलाये हैं ? कौनो देत हिलोर ? … गीत की अगली ही पंक्तियों में वे उत्तर भी दे देतीं हैं . गणपति झूल रहे , गौरा झुलायें हैं , शिव जी देत हिलोर.” … सच ही है हर बच्चा झूला झूलकर ही बडा होता है . सावन में झूला झूलने की हमारी सांस्कृतिक विरासत बहुत पुरानी है . राजनीति के मर्मज्ञ परम ज्ञानी भगवान कृष्ण तो अपनी सखियों के साथ झूला झूलते , रास रचाते दुनियां को राजनीति , जीवन दर्शन , लोक व्यवहार , साम दाम दण्ड भेद बहुत कुछ सिखा गये हैं . महाराष्ट्र , राजस्थान , गुजरात में तो लगभग हर घर में ही पूरे पलंग के आकार के झूले हर घर में होते हैं . मोदी जी के अहमदाबाद में साबरमती तट पर विदेशी राजनीतिज्ञों के संग झूला झूलते हुये वैश्विक राजनीती की पटकथा रचते चित्र चर्चित रहे हैं . आशय यह है कि राजनीति और झूले का साथ पुराना है .
मैं सोच रहा था कि पक्ष और विपक्ष राजनीति के झूले के दो सिरे हैं . तभी पत्नी जी की कोकिल कंठी आवाज आई “काहे को है बनो रे पालना , काहे की है डोर , काहे कि लड़ लागी हैं ? राजनीती का हिंडोला सोने का होता है , जिसमें हीरे जवाहरात के लड़ लगे होते हैं , तभी तो हर राजनेता इस झूले का आनंद लेना चाहता है . राजनीति के इस झूले की डोर वोटर के हाथों में निहित वोटों में हैं . लाभ हानि , सुख दुख , मान अपमान , हार जीत के झूले पर झूलती जनता की जिंदगी कटती रहती है . कूद फांद में निपुण ,मौका परस्त कुछ नेता उस हिंडोले में ही बने रहना जानते हैं जो उनके लिये सुविधाजनक हो . इसके लिये वे सदैव आत्मा की आवाज सुनते रहते हैं , और मौका पड़ने पर पार्टी व्हिप की परवाह न कर जनता का हित चिंतन करते इसी आत्मा की आवाज का हवाला देकर दल बदल कर डालते हैं . अब ऐसे नेता जी को जो पत्रकार या विश्लेषक बेपेंदी का लोटा कहें तो कहते रहें , पर ऐसे नेता जी जनता से ज्यादा स्वयं के प्रति वफादार रहते हैं . वे अच्छी तरह समझते हैं कि ” सी .. सा ” के राजनैतिक खेल में उस छोर पर ही रहने में लाभ है जो ऊपर हो . दल दल में गुट बंदी होती है . जिसके मूल में अपने हिंडोले को सबसे सुविधाजनक स्थिति में बनाये रखना ही होता है . गयाराम जिस दल से जाते हैं वह उन्हें गद्दार कहता है , किन्तु आयाराम जी के रूप में दूसरा दल उनका दिल खोल कर स्वागत करता है और उसे हृदय परिवर्तन कहा जाता है. देश की सुरक्षा के लिये खतरे कहे जाने वाले नेता भी पार्टी झेल जाती है.
किसी भी निर्णय में साझीदारी की तीन ही सम्भावनाएं होती हैं , पहला निर्णय का साथ देना, दूसरा विरोध करना और तीसरा तटस्थ रहना. विरोध करने वाले पक्ष को विपक्ष कहा जाता है. राजनेता वे चतुर जीव होते हैं जो तटस्थता को भी हथियार बना कर दिखा रहे हैं . मत विभाजन के समय यथा आवश्यकता सदन से गायब हो जाना ऐसा ही कौशल है . संविधान निर्माताओ ने सोचा भी नहीं होगा कि राजनैतिक दल और हाई कमान के प्रति वफादारी को हमारे नेता देश और जनता के प्रति वफादारी से ज्यादा महत्व देंगे . आज पक्ष विपक्ष अपने अपने हिंडोलो पर सवार अपने ही आनंद में रहने के लिये जनता को कचूमर बनाने से बाज नही आते .
मुझ मूढ़ को समझ नहीं आता कि क्या संविधान के अनुसार विपक्ष का अर्थ केवल सत्तापक्ष का विरोध करना है ? क्या पक्ष के द्वारा प्रस्तुत बिल या बजट का कोई भी बिन्दु ऐसा नही होता जिससे विपक्ष भी जन हित में सहमत हो ? इधर जमाने ने प्रगति की है , नेता भी नवाचार कर रहे हैं . अब केवल विरोध करने में विपक्ष को जनता के प्रति स्वयं की जिम्मेदारियां अधूरी सी लगती हैं . सदन में अध्यक्ष की आसंदी तक पहुंचकर , नारेबाजी करने , बिल फाड़ने , और वाकआउट करने को विपक्ष अपना दायित्व समझने लगा है .लोकतंत्र में संख्याबल सबसे बड़ा होता है , इसलिये सत्ता पक्ष ध्वनिमत से सत्र के आखिरी घंटे में ही कथित जन हित में मनमाने सारे बिल पारित करने की कानूनी प्रक्रिया पूरी कर लेता है . विपक्ष का काम किसी भी तरह सदन को न चलने देना लगता है . इतना ही नही अब और भी नवाचार हो रहे हैं , सड़क पर समानांतर संसद लगाई जा रही है . विपक्ष विदेशी एक्सपर्टाइज से टूल किट बनवाता है , आंदोलन कोई भी हो उद्देश्य केवल सत्ता पक्ष का विरोध , और उसे सत्ता च्युत करना होता है . विपक्ष यह समझता है कि सत्ता के झूले पर पेंग भरते ही झूला हवा में ऊपर ही बना रहेगा , पर विज्ञान के अध्येता जानते हैं कि झूला हार्मोनिक मोशन का नमूना है , पेंडलुम की तरह वह गतिमान बना ही रहेगा . अतः जरूरी है कि पक्ष विपक्ष सबके लिये जन हितकारी सोच ही सच बने , जो वास्तविक लोकतंत्र है .
पारम्परिक रूप से पत्नियों को पति का कथित धुर्र विरोधी समझा जाता है . पर घर परिवार में तभी समन्वय बनता है जब पति पत्नी झूले दो सिरे होते हुये भी एक साथ ताल मिला कर रिदम में पेंगें भरते हैं .यह कुछ वैसा ही है जैसा पक्ष विपक्ष के सारे नेता एक साथ मेजें थपथपा कर स्वयं ही आपने वेतन भत्ते बढ़वा लेते हैं . मेरा चिंतन टूटा तो पत्नी का मधुर स्वर गूंज रहा था ” साथसखि मिल झूला झुलाओ. काश नेता जी भी देश के की प्रगति के लिये ये स्वर सुन सकें .
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈