श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण रचना “याद जब कभी भी ….”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 99 ☆
☆ याद जब कभी भी …. ☆
न जाने किनके सर मुकद्दर आये
अपने हिस्से में बस पत्थर आये
याद जब कभी भी आई उनकी
दिल के हर जख्म फिर उभर आये
राह तकते रहे हर सू हम जिनकी
वो गैर की बाहों में नजर आये
राह में लुटते रहे रहज़न जब तक
तब तक न वहाँ कोई रहबर आये
चाह मंज़िल की रुकती है न कभी
राह में कैसे भी क्यों न मंजर आये
कत्ल किया था किसी और ने कभी
इल्जाम लेकिन हमारे सर आये
उगलता नफरती खून अखबारों में
मुहब्बत की भी “संतोष” खबर आये
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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