डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक अत्यंत विचारणीय  एवं सार्थक आलेख शुद्धता को ताक पर रखते लोग!।)

☆ किसलय की कलम से # 62 ☆

☆ शुद्धता को ताक पर रखते लोग! 

मानव का गहना मानवता है। सच्चाई, सद्भावना और परोपकार रूपी ये तीन गुण यदि मानव आत्मसात ले तो शेष सभी अच्छाईयाँ उसके मन में स्थाई रूप से बस जाती हैं। जीवनयापन का मूल आधार धनोपार्जन होता है। बुद्धि और श्रम के अनुपात में ही आपकी संपन्नता लताओं और पौधों के समान धीरे-धीरे बढ़ती है। त्वरित संपन्नता का कारक नैतिकता व ईमानदारी कभी नहीं हो सकता, लेकिन आज यही सब समाज में दिखाई दे रहा है। अधिकांश लोग आज नैतिकता व ईमानदारी को अपने लॉकर में बंद कर उद्योग-धंधे, नौकरी-पेशा अथवा व्यवसाय करते नजर आते हैं।

जब तक मानव जीवन के लिए कोई भी कृत्य अथवा व्यवहार हानिकारक या जानलेवा न हो तब तक ठीक है, लेकिन जब आपके कृत्य व आचरण से व्यक्तिगत अथवा सामूहिक क्षति होने लगे तो यह मानवता के लिए घोर संकट का कारण बन सकता है।

एक समय था जब लोग खाद्य पदार्थों में मिलावट करना अपराध मानते थे, अपराध बोध से द्रवित हो जाते थे। मानते थे कि हमारे अनैतिक कार्य ईश्वर भी देखता है। उनका अंतस ऐसे गलत कार्य करने की स्वीकृति कभी नहीं देता था, लेकिन वर्तमान में स्वार्थ की हवस इतनी बढ़ती जा रही है कि लोग नैतिकता और ईमानदारी को फिजूल की बातें मानने लगे हैं। शुद्धता को ताक पर रखकर ये लोग केवल अपना उल्लू सीधा करने में संलिप्त हैं।

अनाज की पैदावार बढ़ाने के लिए अधिकांश लोग रासायनिक खाद का उपयोग करते हैं। यह सभी जानते हैं कि हुबहू अनाज के रूप में हमें इस प्रकार का पौष्टिकताविहीन खाद्य पदार्थ मिलता है लेकिन “ज्यादा उत्पादन – ज्यादा पैसा” के समीकरण का सिद्धांत आज की प्रवृत्ति बनता जा रहा है। लौकी, कद्दू जैसी सब्जियों को इंजेक्शन लगाकर रातों-रात बड़ा कर दिया जाता है। पपीते और केलों को कार्बाइड जैसे केमिकल से पकाकर बाजार में बेचा जाता है। मुरझाई व पीली पड़ी सब्जियों में रंग और रसायनों से कई दिनों तक हरा भरा रखा जाता है। सीलबंद खाद्य पदार्थों में विनेगर, नाइट्रोजन व प्रिजर्वेटिव जैसे हानिकारक रसायन मिलाकर न सड़ने की सुनिश्चितता पर कई-कई महीनों तक बेचे जाते हैं। आटे में बेंजोयल पर ऑक्साइड जिसे सिर्फ 4 मिलीग्राम डालने की शासन की स्वीकृति है उसे 400 मिलीग्राम तक डालकर लोगों की किडनी से खिलवाड़ किया जाता है। आटे में चाक पाउडर, बोरिक पाउडर और घटिया चावल का चूरा मिलाना भी आम बात है। और तो और अब यूरिया, डिटर्जेंट, घटिया तेल आदि से हानिकारक सिंथेटिक दूध बनाकर बेचा जा रहा है। ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन गाय-भैंसों को लगाकर दूध का उत्पादन बढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि 25% दूध पशु अपने बच्चों के लिए बचा लेती है। इस बचे दूध को भी इंजेक्शन लगाकर निकाल लिया जाता है, इस इंजेक्शन से हमारे शारीरिक विकास पर विपरीत प्रभाव तो पड़ता ही है, हाइपोथैलेमस ग्लैंड में ट्यूमर होने की भी संभावना बढ़ जाती है। अब सुनने मिलता है कि कृत्रिम चावल और पत्ता गोभी भी पन्नियों  से बनाए जाने लगे हैं। खाद्य तेलों और वनस्पति घी में जानवरों की चर्बी मिलाई जाती है। घी में उबले आलू भी मिलाये जाते हैं। हम बहुत पहले से नकली दवाइयों के धंधे फूलते-फलते देख रहे थे। अनजाने में नकली दवाईयों का सेवन कर कितनों की जानें गई होंगी, इनका कभी लेखा-जोखा नहीं किया जा सका है। दवाईयों में सबसे घातक मिलावट और चालबाजी हाल ही में कोरोना के चलते सामने आई जब इस महामारी का सबसे कारगर इंजेक्शन रेमडेसिवर का मिलावटी और नकली होना पाया गया। इस अमानवीय कृत्य में संलग्न लोग पकड़े भी गए हैं। देखना है मानवता से खिलवाड़ करने का इन पर क्या दंड निर्धारित होता है। वैसे इस धंधे में पूरी एक श्रृंखला होती है जो उत्पादक, वितरक, मेडिकल स्टोर्स, हॉस्पिटल तथा पूरे डॉक्टर वर्ग की बनी होती है। उत्पादन मूल्य में उक्त सभी लोगों का प्रतिशत जोड़कर दवाईयाँ उपभोक्ताओं को जिस मूल्य पर विक्रय हेतु उपलब्ध होती हैं वे दवाईयाँ कितने प्रतिशत बढ़े हुए मूल्य पर बेची जाती है, आप स्वयं इसका अंदाजा लगा सकते हैं। सब कुछ जानते हुए भी सरकार इसलिए कुछ नहीं कर पाती कि सरकार में बैठे लोग भी किसी न किसी कारण कीमतें कम करने में सदैव असमर्थ रहते हैं।

मिष्ठान्नों में भी नकली खोवा केमिकल्स, रंगों, प्रिजर्वेटिव्स एवं निषिद्ध घटिया पदार्थों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक होता है। शासकीय स्तर पर सैंपल और दुकानों तथा कारखानों में छापे के बाद भी लगभग सारे दोषी पुनः निर्दोष होने का प्रमाण पत्र लिए उन्हीं गोरखधंधों में लिप्त हो जाते हैं।

मानव जहाँ ऐसे खाद्य पदार्थों को खाकर अपनी जान गँवा रहा है, वहीं मिलावटी सीमेंट, मिलावटी सोने-चांदी के जेवरात, दैनिक उपयोग की घटिया वस्तुओं से भी लोग परेशान और हैरान हैं। कम लागत के लोभ में घटिया पदार्थों के साथ ही मूल वस्तुओं के रूप, गुण, धर्म में समानता रखने वाले सस्ती कीमत के उत्पादों को भी बाजार में शुद्ध वस्तुओं के दामों बेचकर बेतहाशा पैसा कमाया जा रहा है।

हमारे मानव समाज की ये भी एक विडंबना है कि हम जहाँ भौतिक चीजों में मिलावट की बात करते हैं, वहीं हमारी बातों, हमारे व्यवहार यहाँ तक कि हमारी हँसी में भी मिलावट पाई जाने लगी है। हम अंदर से कुछ और हैं तथा बाहर कुछ और प्रदर्शित करते हैं। क्या ये सभी मानव जाति के लिए सही है? हम क्या लेकर आए थे, और क्या लेकर इस दुनिया छोड़ कर जाएँगे, ये विचारणीय बातें हैं।

आज हम स्वयं के द्वारा कमाए हुए रुपयों का लाखों-लाख रुपया अपनी ही बीमारियों में लगा देते हैं। दुर्घटनाओं के बाद हाथ-पैर सुधारवाने में लगा देते हैं। अपने अच्छे-भले घरों, और पुलों, इमारतों को हम ढहते देखते हैं। ये अधिकांश क्षति किन कारणों से होती है। हम एक अनीति से पैसा कमाते हैं। दूसरा व्यक्ति दूसरी अनीति से कमाता है। हम दूसरे के जीवन को दाँव पर लगा देते हैं। दूसरा आपके जीवन के साथ खिलवाड़ करता है। काश! हम सभी एक दूसरे के जीवन को बहुमूल्य मानते हुए नैतिकता और ईमानदारी से अपना-अपना काम करें तो शायद हमारा समाज, हमारा देश, यहाँ तक कि सारा विश्व स्वर्ग न सही, स्वर्ग जैसा जरूर बन सकता है। कुछ भी हो, हमें सच्चाई, सद्भावना और परोपकार के मार्ग पर यथासंभव चलना ही चाहिए। आखिर हम मानव हैं और मानवता समाज का ध्यान रखना हमारा कर्त्तव्य भी है।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत

संपर्क : 9425325353

ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Hemant Bawankar

शोधपरक एवं विचारणीय आलेख

विजय तिवारी " किसलय "

अग्रज बावनकर जी,
आलेख प्रकाशन हेतु आभार।
????