प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 58 ☆ गजल – जिंदगी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆
जीना है तो दुख-दर्द छुपाना ही पड़ेगा
मौसम के साथ निभाना-निभाना ही पड़ेगा।
देखा न रहम करती किसी पै कभी दुनियाँ
हर बोझ जिंदगी का उठाना ही पड़ेगा।
नये हादसों से रोज गुजरती है जिंदगी
संघर्ष का साहस तो जुटाना ही पड़ेगा।
खुद संभल उठ के राह पै रखते हुये कदम
दुनियॉं के साथ ताल मिलाना ही पड़ेगा।
हर राह में जीवन की, खड़ी है मुसीबतें
मिल उनसे, उनका नाज उठाना ही पड़ेगा।
दस्तूर हैं कई ऐसे जो दिखते है लाजिमी
हुई शाम तो फिर दीप जलाना ही पड़ेगा।
है कौन जिससे खेलती मजबूरियॉं नहीं ?
मन माने या न माने मनाना ही पड़ेगा।
पलकों में हों आँसू तो ओठों को दबाके
मुँह पै बनी मुस्कान तो लाना ही पड़ेगा।
खुद के लिये न सही, पै सबके लिये सही
जख्मों को अपने दिल के छुपाना ही पड़ेगा।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सर